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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 170 [रोहण] वृक्ष पर आरोहण, वृक्ष पर चढ़ना। (भा.२६) -हिट्ठ स्त्री [अधस्] वृक्ष के नीचे। (बो.४१) तरुण वि [तरुण] युवक, जवान, तरुण । (स.७९) तरुणी स्त्री तरुणी] युवती, जवानस्त्री। (स.१७४) तल पुंन तल] तमालवृक्ष, ताड़ का पेड़। (स.२३८) तव पुंन तपस्] तप, तपस्या, तपश्चर्या। (पंचा.१७०, स.१५२, प्रव.१४, निय.५५, द.२८) विषय और कषाय के विनिग्रह को करके ध्यान एवं स्वाध्याय द्वारा आत्मा का चिंतन किया जाता है, वह तप है। विसयकसायविणिग्गहभावं, काऊण झाणसज्झाए। जो भावइ अप्पाणं, तस्स तवं होदि णियमेण ।। (द्वा.७७) तप से सभी स्वर्ग प्राप्त होते हैं। सग्गं तवेण सव्वो वि । (मो.२३) तप के बाह्य और अभ्यन्तर ये भेद किये गये हैं। इनके भी छह-छह भेद होते हैं। -गुणजुत्त वि [गुणयुक्त] तपगुण से युक्त। (शी.८) -चरण/यरण न [चरण] तपश्चरण,तपश्चर्या। (निय.५५,११८) तपश्चरण से अनन्तानन्त भवों के द्वारा उपार्जित शुभ-अशुभ कर्मसमूह नष्ट हो जाते हैं। (निय.११८) -सामण्ण पुं [श्रामण्य] तपस्वी-श्रमण । वंदमि तवसामण्णा। (द.२८) तवेहिं (तृ. ब. स. १४४) तवसा (तृ.ए.प्रव.चा.२८) तवंहि (स.ए.पंचा.१६०) तवोकम्म पुं न तपःकर्म] तपःकर्म, छह आवश्यक कर्मों में एक भेद। (पंचा.१७२) जो कुणदि तवोकम्म। तवोधण पुं न [तपोधन] तपरूपी धन। जिणवयणगहिदसारा, विसयविरत्ता तवोधणा धीरा। (शी.३८) For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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