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५४) णासेदि (व.प्र.ए.स. १५८-१५९) णासए (व.प्र.ए.द.७) णासदि (व.प्र.ए.सू.३४) णास पुं [नाश] नाश, ध्वंस, व्यय। भावस्स पत्थि णासो।
(पंचा.१५) णासण वि [नाशन] नाश करने वाला। (भा.१०७) णाहग पुं [नाशक] स्वामी, प्रधान, शरण्य। (द्वा.२२) णाहि पुं [नाभि नाभि, केन्द्र। (सू.२४) णि अ [नि] निश्चय,ही।मुणिवरवसहा णि इच्छंति। (बो.४३) जिंद सक [निन्द्] निन्दा करना, दूषित ठहराना। केई जिंदंति सुंदरं
मग्गं। (निय.१८५) णिंद वि [निन्ध] निन्दनीय, निन्दा योग्य। (प्रव. चा.४१) जिंदा स्त्री [निन्दा] घृणा, जुगुप्सा। (स.३०६) जिंदाए
(स.ए.मो.७२) प्रिंदिय वि [निन्दित] निन्दित, बुरा, निन्दनीय। (प्रव.चा. ४७) णिकाय पुं [णिकाय] समूह, वर्ग, जाति। एदे जीवणिकाया।
(पंचा.११२) णिक्कंख वि [निष्कांक्ष] आकांक्षा रहित, चाह रहित। (स.२३०) णिक्कंखिय वि निष्कांक्षित न चाहने वाला, अभिलाषा रहित।
(चा.७) णिक्कल वि (निष्कल कला रहित, शरीर रहित। (निय.४३)
जइधम्मं णिक्कलं वोच्छे। (चा.२७) णिक्कलुस वि निष्कलुष] निर्दोष, पवित्र, मलरहित। (बो.४९)
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