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129 भा.१३१) उत्थरइ जाण जर ओ। (भा.१३१) जा सक [या] प्राप्त करना, जानना, जाना। तेहिं वि ण जाइ मोहं। (भा.१२९, मो.२१) जाओ (अनि.भू.भा.३३,५०,५३) मोहो
खलु जादि तस्स लयं । (प्रव.८०) जाइ स्त्री [जाति] जन्म, जाति, कुल,नामकर्म का एक भेद।
जाइजरमरगरहियं। (निय.१७६) देसकुलजाइसुद्धा। जाण सक [ज्ञा जानना, समझना, ज्ञान प्राप्त करना। (स.२) तं जाण परसमा । (स.२) जाणइ जाणदि (व.प्र.ए.सू.५, भा.३१, स.१४३, २०१) जाण (वि. आ. म.ए.स. २१६, निय.४६,भा.२ चा.४३, बो.७) जाणिज्जइ (वि.प्र.ए.सू.१६) जाणिज्जह (वि.म.ब.भा.८७) जाणिऊण (सं. कृ.सू.६, चा.४०) जाणतो (व.कृ.र. २९०) जाणादि (व.प्र.ए.प्रव.जे.४९, ६५) जाण वि [जानन्] जानता हुआ। (प्रव.५२) जाण/जाणग वि [ज्ञायक] जानने वाला, ज्ञायक। (स.६,७, प्रव३३, मो.२९) जाणओ दु जो भावो। (स.६) जाणगो तेण सो होद। (स.२१०,२१३)-भाव पुं [भाव] ज्ञायक भाव।जाणगभावो णियदो। (स.२१४) जणणा न [ज्ञान] जानना, जानकारी, बोध। (प्रव.३४) तज्जाणण हि णाणं, सुत्तस्स य जाणणा भणिया। (प्रव.३४) जाणय वि [ज्ञायक जानने वाला। जीवो दु जाणयो णाणी। (स.४०३) -सहाव [स्वभाव] ज्ञायक स्वभाव। अप्पाणं मुणदि जाणयसहावं। (स.२००)
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