________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
103
खेयर खेचर] विद्याधर (भा. १०८) खेयरअमरणराणं। (भा.१०८) खेल पुं [श्लेष्मन्] कफ, थूक। (बो.३६) सिंहाणखेलसेओ। (बो.३६) खोह पुं क्षोभ] रज, राग-द्वेष, संवेग, उत्तेजना, व्याकुलता। (पंचा.१३८) जीवस्स कुणदि खोह। (पंचा.१३८) मोहक्खोह विहीणो। (प्रव.७)
गअ वि [गत] प्राप्त हुआ। (भा.८८, सू.४) असुद्धभावो गओ
महाणरयं । (भा.८८) गइ स्त्री [गति जीव की अवस्था। नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव
की अवस्था। (भा.८, बो.३२) गइ-इंदिए च काए। (बो.३२) गइंद पुं [गजेन्द्र] ऐरावत हाथी, श्रेष्ठ हाथी। (द्वा.१०) हयमत्तगइंद
चाउरंगबलं। (द्वा.१०) गंथ पुं [ग्रन्थ] 1. शास्त्र, सूत्र, आगम। २.गांठ, परिग्रह,
अन्तरङ्गासक्ति। सव्वेसिं गंथाणं। (निय.६०) गिहगंथमोहमुक्का। (भा.४४) - गाहीय वि [ग्रहीत] परिग्रह को ग्रहण करने वाले। (मो.७९) - चाय न [त्याग] परिग्रह त्याग। (द.१४) गंथिय वि [ग्रथित] गूंथा गया, निर्मित किया गया। (सू.१, भा.९२) अरहंतभासियत्थं गणहरदेवेहिं गंथियं सम्म। (सू.१)
For Private and Personal Use Only