________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
खणरुइ स्त्री [क्षणरुचि] बिजली,उल्का,विद्युत्। (द्वा.५)
खणरुइघणसोहमिव थिरंण हवे। (द्वा.५) खम सक [क्षम्] क्षमा करना,सहना खमेहिं तिविहेण सयल
जीवाणं। (भा.१०९) खम वि [क्षम] सहन शक्ति, क्षमा, क्रोध का न आना।
(प्रव.चा.३१) खमा स्त्री [क्षमा, क्षमा,क्रोध का अभाव, धर्म का एक लक्षण । (निय.११५, प्रव, चा. ३१, भा १५५, १०९, बो.५१) खमदमखग्गेण विष्फुरंतेण। (भा.१५५) कोहं खमया। (निय.११५) -गुणपुंन [गुण] क्षमा गुण। इस णाऊण खमागुण। (भा. १०९) -सलिल न सिलिल] क्षमारूपी जल। वरखमसलिलेण सिंचेह। (भा.१०९) धर्म के दश भेदों में क्षमा का पहला नाम है। (द्वा.७०) कोहुप्पत्तिस्स पुणो, बहिरंगं जदि हवेदि सक्खादं। ण कुणदि किंचिवि कोहो, तस्स खमा होदि धम्मो ति।। (द्वा.७०) खमाय (तृ.ए.भा. १०८) खमेहि (वि. आ. म. ए. भा.
खय पुं क्षय] विनाश, नष्ट होना। (स.७३, निय. ११४) सब्वे एए खयं णेमि। (स.७३) -करण न [करण] क्षय का आश्रय, क्षपणाविधि। खयकरणं सव्वदुक्खाणं। (द.१७) -हेउ पुं [हेतु] क्षय का कारण। पायच्छित्तं जाणह, अणेयकम्माण खयहे। (निय.११७) खयर पुं स्त्री [खचर] विद्याधर, आकाश में चलने वाले।
For Private and Personal Use Only