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(भा.१४४) किरिया स्त्री क्रिया] क्रिया, व्यापार, प्रयत्न।
कायकिरियाणियत्ती। (निय.६८,७०) -वाइ पुं [वादिन्] क्रियावादी। (भा.१३६) असियसयकिरियावाई। किवया स्त्री [कृपया] कृपा, दया, अनुकम्पा। (प्रव.चा.ज.वृ.६८,
पंचा.१३७) किसि स्त्री [कृषि] खेती, कृषि। (लिं.९) -कम्म पुंन [कर्मन्]
कृषिकर्म, खेती। (लिं.९) किह अ [कथम्] कैसे, क्यों। (स.१४५, निय.१३८) किह तं होदि
सुसीलं। (स.१४५) कीर सक [क] करना, कीरइ कीरए (प्रे.व.प्र.ए.स.२६३, भा.४८, द.२२) कीरइ अज्झवसाणं। (स.२६३) किं कीरइ दवलिंगेण । (भा.४८) बाहिरगंथस्स कीरए चाओ। (भा.३) । कु सक [कृ] करना। कुज्जा (वि. आ.निय.१४८) णाऊण धुवं कुज्जा। (मो.६०) कुज्जा अप्पे सभावणा। (मो.७१) (हे. वर्तमानापञ्चमीशतृषु वा ३/१५८, ज्जा-ज्जे ३/१५९) कु अ [कु] कृत्सित, निर्दोष, मिथ्या। (चा.१३) -णय न [नय] कुनय, मिथ्यानय। (भा.१४०) कुणयकुसत्येहि मोहिओ जीवो। (भा.१४०) -तित्थ वि तीर्थ] कुतीर्थ, मिथ्यातीर्थ। (द्वा.३२) -दसण न [दर्शन] मिथ्यादर्शन। कुदंसणे सद्धा । (चा.१३) -हाण पुंन [दान] कुदान, खोटा दान। कुद्दाणविरहरहिया। (बो.४५) -देव पुं [देव] कुदेव,खोटेदेव,राग-द्वेष-मोह से सहितदेव,
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