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( ६ )
लेखित एक एक चमत्कार इतना नीत्र प्रभाववाला है कि जिसके अवलोकन मात्र से सभ्य समुदाय में सत्य वस्तुस्थिति का भान हो आता है और कुलिंगी - अपवादियों के मलिन हृदय में खलभनी मच जाती है । इसको मुद्रित हुए कुछ कम तीन वर्ष हो चुके हैं, परन्तु सत्य वस्तुस्थिति को शास्त्रीय प्रमाणों से दिखलाने वाले इसके रसपूर्ण मंत्र अभीतक नूतन रूप से ही अलंकृत हैं और वे अपनी सत्यता के कारण हमेशां नूतनावस्था में ही कायम रहेंगे !
पाठको ! इस पुस्तक के चमत्कारी सिद्धान्त शास्त्रार्थ और हेन्डबिलों की कसोटी पर चल कर अपनी वास्तविक सत्यता को सिद्ध कर चुके हैं। इसलिये इसके विषय में अधिक उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है । तथापि इतना तो अवश्य लिखना पड़ता है कि इसी महा महिमशाली पुस्तक के लिये शहर रतलाम में सागरानंदसुरिजीने कोई सात महीने तक वर दौड़ पकी अपने अन्ध-श्रद्धालुओं को घुणाये, हेन्डबिलों के द्वारा अपनी हार्दिक मलिनता को भी जाहिर की, शास्त्रीय प्रमाण तथा मुठरिया साह के उच्चाटन - मंत्र ( टिकटों) से घबराकर राज्य में जाके आजीजी सी की और आखिर शास्त्रार्थ की गुदड़ी गले में पड़ती देख तीर्थ जाने का बहाना निकाल के रतलाम से निशि - पलायन भी किया । यह सब प्रभाव किसका है ? पीतपदाग्रह - मीमांसा में प्रालेखित शास्त्रीय प्रमाणोपेत चमत्कारों का ।
आप लोग जानते ही हैं कि-प्रबल चमत्कारों से उत्पन्न होने वाली कुडकुड़ाहट एकदम मिट नहीं जाती, उसकी आकस्मिक लगा
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