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(१३) सोचा पुण्ययोगसे इन महात्माका विनाबुलाये यहां आना हुआ है और ये दुष्ट लोग गुण अवगुणका विचार न करके पापपुण्यको भी कुछ न गिनकर स्वर्ग नर्ककी भी कुछ दरकार न रखते हुए मदान्ध होकर हमारे पूजनीय अतिथिका पराभव कर रहे हैं तो ऐसा अन्याय हम कैसे देख सके ? संसारमें दुष्टको शिक्षा देना और शिष्टका सन्मान करना यह एक उत्तम न्यायमार्ग है। इससे धर्मका सत्कार और अधर्मका तिरस्कार होता है । इस लिये शीघ्र ही इन उद्धतोंको इनके कर्मका फल देना ही चाहिये ! __ यह सोचकर देवताने उनकी मुशकें बांधली
और खूब मारा, दुर्विनीतोंका हाल बहुत बुरा हुआ । बहुत देरतक भी जब वे घरोंमें न जा सके तो उनके मातपिता वगैरह उन्हें ढूंढते हुए वहाँ आये, देखा तो मुंहसे रुधिर प्रवाह
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