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(१२)
वहां आ पहुँचे और मुनिको देखकर खिड़ खिड़ हंसते हुए बोले " देखो यह क्या हूंठ सा खड़ा है ? इस तरह हँसी कर उन उन्मत्त अभिमानी और, निर्विवेकी युवकोंने उस शान्तात्मा जगतके निष्कारणबन्धु तपस्वी मुनिको मारपीट करने में भी कसर न रक्खी। इतने पर भी सत्यक्षमा सागर मुनिने रंचकमात्र भी कोधको अवकाश न देकर शुभ भावना रूपजलसे अपने क्षमा रूप कल्पतरुको सविशेष सिंचन करना शुरू किया। परन्तु निहतुक-जगत्वत्सल मुनिराजको सताना एक सरासर अन्याय बल्कि-घोरअधर्म था, "देवा वि तं नमसंति जस्स धम्मे सया मणो। गुणाः पूजास्थानं न च तेषु लिङ्गन च वयः। __ मुनिकी कदर्थना होती देखकर तालावके अधिष्ठायक देव कोपायमान हुए। उन्होंने
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