________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-२०-
.
(४) दक्षिण दिशा के जिनालयों में खण्डित प्रतिमा (जिसका एक पांव खण्डित है) पर १६११ वर्षे श्री मूलसंघे तथा उत्तर के जिनालयों में प्रतिमा पर “संब त् १६१२ वर्षे मूलसंघे' लिखा है -
इन लेखो से यह प्रमारिणत होता हैं कि भ० कुन्द कुन्दाचार्य के अनुयायो मूलसंघी एवं रामसेनाचाय के काष्ठासपो भट्टारकों द्वारा श्रद्धालु श्रावकों ने समय-२ पर प्रतिमाएं प्रतिष्ठत करा कर जिनालयों में विराजमान कराई थी। दक्षिण के जिनालयों के मध्य में मण्डप सहित जो मन्दिर हैं उसके द्वार के समीप दीवाल में लगे हुए शिलालेख से ज्ञात होता हैं कि दिगम्बर काष्टासंघ के नदी तट गच्छ विद्यागण के भट्टारक श्री सूरेन्द्र कोति के समय में बगेरवाला जाति के गोबाल गोत्री संघवी आल्हा के सुपुत्र भोज के कुटुम्बियों ने यह मन्दिर बनाकर प्रतिष्ठा महोत्सव किया । इस मन्दिर के पास एक कोठरी है जिसमें उपकरण रखे जाते है किसो समय भट्टारकजो के रहने के उपयोग में आतो थो । उसके सामने मण्डप में भट्टारक को गादो है जिस पर अब भी भट्टारक बैठ कर शास्त्र पढते हैं । तथा काच का एक लघु चत्यालय भी दि० जैन समाज का उस पर रक्खा हुआ है । इससे सिद्ध होता है कि दिगम्बर जैन भट्टारकों ने इस विशाल मन्दिर के निर्माण का कार्य कराया है और येही वास्तविक संरक्षक रहे थे।
For Private and Personal Use Only