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मूलसंघे सरस्वती गच्छे बलात्कार गणे श्री कुंद कुंद भट्टारक 'गुरुपदेशात् लेख अङ्कित है। हाथो पर एक गुम्बद बना हुआ है। हाथी के दोनों ओर चरणपादुकाएँ स्थापित है, जिसके नाचे चमर धारी इन्द्र खडे हैं।
जिनालयों का निर्माण निज मन्दिर के बाद थोडा २ उत्तरोत्तर हुआ है । बावन जिनालय की प्रतिमाएं विक्रम स. १६११ से लगाकर १८८३ तक की हैं । प्रतिमा लेखों से ज्ञात होता है ये जिनालय वि० स० १६११ के पूर्व ही बनने प्रारम्भ हो गये थे। प्रतिमाओं पर लिखे गये लेख में से कुछ निम्न प्रकार है :(१) दक्षिण के मण्डप सहित मन्दिर के पास बाई ओर प्रथम जिनालय में भगवान आनिनाथ को प्रातमा विराजमान है। जिस पर लिखा है :
श्री काष्ठासंघे आदिनाथ प्रतिमा सं० १७५४ वर्षे पोस मासे कृष्णपक्षे पंचम्यां तिथो बुध वासरेधुलेव ग्रामे श्री काष्ठासंघे नदी तट गच्छेविद्यागणे भट्टारक श्री राम सेनान्वये तदनुक्रमेण भ० राजकोति तत्पट्टे भ० लक्ष्मी सेनतत्पट्टे भ० इंदुभूषण तत्पट्टे भ० सुरेन्द्रकीर्ति उपदेशात् प्रतिष्ठितं । हुबड़ जाति बड शाखायी विश्वेश्वरे गोत्रे...।"
यही लेख उसी जिनालय को दोवाल पर लगी हुई पाटो पर भी अङ्कित है।
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