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प्राकथन
मनुष्य की हथेलियाँ ( करतल ), अपनी आकृति, बनावट, मृदुता, रंग, रूप और रेखाओंकी दृष्टिसे, एक दूसरेसे अति भिन्न होती हैं। शरीरशास्त्रियोंका कहना है कि, शरीरका यह ढाँचा जिस चमड़ेसे आवृत है वह कुछ तन्तुओंसे बँधा है। वे सब एक दूसरेसे सम्बन्धित ही नहीं हैं बल्कि उनसे मोड़के स्थानोंमें कुछ चिह्न भी उठ आए हैं। इन हथेलियोंकी विषमताका कारण नाना आकृतिकी मांसपेशियाँ हैं। शरीरशास्त्री यह विश्वास नहीं करते कि यन्त्ररूपमें बने हुए घुमावदार मोड़ों और संकेतोंका आध्यात्मिक रहस्यमय या भविष्य बतानेवाला कोई अर्थ होता है।
मनुप्यमें अपने भविष्य जाननेकी इच्छा उतनी ही पुरातन है जितना कि स्वयं मनुष्य, और यह उतनी ही बलवती होती जाती है ज्यों ज्यों मनुष्यका वातावरण हर तरफ अनिश्चितसा दिखता है। प्रति मनुप्यमें आश्चर्यरूपसे अति भिन्न पाई जाने वाली हथेलियाँ ही भविष्य-ज्ञानपद्धतिका आधार हैं और इसे सामुद्रिक ( हस्तरेखा ) विद्या कहते हैं। हाथकी रेखाओं और चिह्नोंका, खासकर हथेलीका, लाक्षणिक अर्थ है । वे हमारे मानसिक और नैतिक स्वभावोंसे ही सम्बन्धित नहीं हैं बल्कि व्यक्तिकी भावी घटनाओंकी गतिविधियों पर भी प्रकाश डालते हैं। यदि कुछ चिह्न हमारे अतीतकी बातें बताते हैं तो कुछ भविष्यकी।
शरीरपरके चिह्नोंसे मानवीय प्रवृत्तियोंका भविष्य कहना एक पुराना सिद्धान्त है तथा प्रायः इसका उल्लेख प्राचीन भारतीय साहित्यमें मिलता है। और सामुद्रिक विद्या उससे एक दम सम्बन्धित है। चूंकि शारीरिक चिह्नोंकी व्याख्या सिर्फ लाक्षणिक है पर पूर्वकी ओर पश्चिम देशों की मौलिक मान्यताएँ एक दूसरेसे नहीं मिलती।
भारतीय पद्धति रेखाओं, शङ्ख तथा चक्रोंपर ज्यादा जोर देती है जब कि पाश्चात्य पद्धतिमें नाना आकृतिओं और रेखाओंको महत्त्व दिया गया है, तथा उसमें एक ही रेखाके अर्थोंमें बहुधा भेद पड़ जाता है। चाहे मौलिक मान्यताएँ प्रामाणिक न हों तथा बहुतसे अर्थ तर्कपूर्ण भले न हों पर एक तथ्य तो जरूर है कि अनेकोंके लिये यह सामुद्रिक विद्या आकर्षणकी वस्तु है। तथा गत कुछ वर्षों में प्रधान-प्रधान व्यक्तियों के हस्तरेखा चित्र लिये गये हैं तथा उनसे कुछ आनुमानिक निष्कर्ष निकाले गये हैं। सामुद्रिक विद्या बहुतोंके लिए संसारी जीविकाका धन्धा हो गया है परन्तु करलक्खण, जो कि यहाँ से प्रथम बार सम्पादित हो रहा है, के ग्रन्थकारका उद्देश्य धार्मिक ही है। इस ग्रन्थके लिखनेमें उनका उद्देश्य धार्मिक संस्थाओंको इस योग्य बनानेका है कि जिससे वे व्यक्तियोंकी योग्यताको माप सकें और उनको ( पुरुष या स्त्रीको ) धार्मिक प्रतिज्ञाएँ तथा नियम दे सकें।
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