SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करलक्खणं कुल रेखाके ऊपर, प्रदेशिनीके मूलमें, जो रेखा हो वह उस पुरुषके गुरु और देवताका स्मरण रहेगा यह बतलाती है । ( ४३ ) अङ्गलि-अङ्गुष्ठाग्रस्थभ्रमराणां फलम्अंगुलिअंगुठुवरिं हवंति भमराउ दाहिणावत्ता। धणभागी जणपुज्जो धम्ममई बुद्धिमंतो अ॥ अङ्गुल्यङ्गुष्ठोपरि भवन्ति भ्रमराः दक्षिणावर्ताः । धनभागी जनपूज्यः धर्मरतिः बुद्धिमान् च ॥ अँगुलियों और अंगूठेके ऊपर जिसके दाहिनी ओर घूमने वाली भौंरी हो वह धनका भोग करनेवाला, लोगोंमें पूज्य, धर्ममें मति रखने वाला और बुद्धिमान् होवे। ( ४४ ) पावइ पच्छा सुक्खं पच्छिममुहसंठिए सुणह संखे । अभंतराणणे पुण होहीसि णिरंतरं सोक्खं ॥ प्राप्नोति पश्चात् सौख्यं पश्चिममुखसंस्थितः शृणु शङ्खः । अभ्यंतरानने पुनः भविष्यति निरन्तरं सौख्यम् ॥ यदि अंगुलियों और अंगूठेपर पश्चिममुख स्थित शंख हो तो बुढ़ापेमें सुख मिले और यदि शंखका मुख भीतर को हो तो निरंतर सुख मिले । ___( ४५ ) नखानां फलम्मज्झुण्णया य सोणा अप्फुडिया जस्स हुति करणहरा। सो राया धणवंतो विज्जाहिवई पसिद्धो अ॥ मध्योन्नताः च श्रोणा अस्फुटिताः यस्य भवन्ति करनखाः । स राजा धनवान् विद्याधिपतिः प्रसिद्धश्च ॥ जिसके हाथके नख बीचमें उठे हुए, लाल और अस्फुटित हों वह राजा होय, धनवान् होय, विद्यावान् होय और प्रसिद्ध होय । For Private and Personal Use Only
SR No.020437
Book TitleKarlakkhan Samudrik Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrafullakumar Modi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages44
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy