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करलक्खणं
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( ३६ )
काणाङगुलि-अधस्तनरेखाफलम्काणंगुलीइ हिढे रेहाश्रो जस्स जत्तिश्रा इंति। तत्तियमित्ता महिला महिलाण वि तत्तिश्रा पुरिसा॥
कनिष्ठाङ्गुलेः अधः रेखाः यस्य यावन्त्यः भवन्ति ।
तावन्मात्राः वनिताः वनितानामपि तावन्तः पुरुषाः ॥ कनिष्ठिका अंगुलीके नीचे जिसके जितनी रेखाएँ हों उसके उतनी ही स्त्रियां होती हैं और स्त्रियोंके उतने ही पुरुष होते हैं।
( ३७ ) दीहाहि कोमारी धरिया फलिपाहि तो विश्राणिजा । सुण्णाहि असोहग्गं फुडिअाहिं विइ हवे जाण ॥
दीर्घाभिः कुमारिका धृता फलिताभिः विजानीयात् । ।
शून्याभिः असौभाग्यं स्फुटिताभिः व्रती भवेत् जानीहि ॥ यदि ये रेखाएं दीर्घ हों तो जानो कुमारी-पाणिग्रहण हो, यदि फलित हों तो भी यह फल जानो। यदि शून्य हों तो असौभाग्य जानो और फूटी हों तो व्रती होना जानो।
( ३८ )
काण-अगुलिमूलरेखाफलम्काणंगुलिमूलोवरि रेहाश्रो जस्स तिषिण चत्तारि । सो होइ पुण्णभागी रायाईणं पि णमणिज्जो ॥
___ कनिष्ठाङ्गुलिमूलोपरि रेखाः यस्य तिस्रः चतस्रः ।
स भवति पुण्यभागी राजादीनामपि नमनीयः ॥ कनिष्ठिका अंगुलीके मूलमें जिसके तीन या चार रेखाएं हों वह बड़ा पुण्यभागी होता है, राजा आदिक भी उसे नमस्कार करते हैं ।
( ३९ ) जइ ताउ दाहिणकरे आमूलाग्रो वि होइ जणपुज्जो। अह वामे तो पच्छा सव्वेसि सेवणिजइयो॥
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