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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर-लक्खणं ( १ ) पणमिय जिणममित्रगुणं गयरायसिरोमणिं महावीरं। वुच्छं पुरिसत्थीणं करलक्खणमिह समासेणं ॥ प्रणम्य जिनममितगुणं गतरागशिरोमणिं महावीरम् । वक्ष्ये पुरुषस्त्रियोः करलक्षणमिह समासेन ॥ अनंत गुणोंके धारक तथा रागके जीतनेवालोंमें शिरोमणि, महावीर जिनेन्द्रको प्रणाम करके, मैं पुरुष और स्त्रियोंके हस्तरेखाओंके लक्षण, संक्षेपमें, बतलाता हूँ। पावइ लाहालाहं सुहदुक्खं जीविग्रं च मरणं च । रेहाहिं जीवलोए पुरिसो विजयं जयं च तहा ॥ प्राप्नोति लाभालाभौ सुखदुःखे जीवितं च मरणं च । रेखाभिः जीवलोके पुरुषः विजयं जयं च तथा ॥ इस जीवलोकमें मनुष्य लाभ और हानि, सुख और दुःख, जीवन और मरण, जय और पराजय रेखाओंके बलसे पाता है। दाहिणहत्थे पुरिसाण लक्खणं वामयम्मि महिलाणं । रेहाहिं सुद्ध णिज्झाइऊण तो लक्खणं सुणहं ॥ दक्षिणहस्ते पुरुषाणां लक्षणं वामके महिलानाम् । रेखाभिः शुद्धं निर्ध्याय तल्लक्षणं शृणुत ॥ पुरुषोंके लक्षण दाहिने हाथ तथा स्त्रियोंके बायें हाथकी रेखाओंको खूब ध्यानसे देखकर ( जाने जाते हैं )। उन लक्षणोंको सुनो। ३, १ प्रतौ 'णिज्झाकुणं' इति पाठः। २ प्रतौ 'जानीहि' इति पाठः । For Private and Personal Use Only
SR No.020437
Book TitleKarlakkhan Samudrik Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrafullakumar Modi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages44
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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