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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कामघट कथानकम यदुक्तम्कहा भी है - गते शोको न कर्त्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् । वर्तमानेन योगेन वर्तन्ते हि विचक्षणाः ॥४७॥ गए हुए का-बीते हुए का शोक नहीं करना चाहिए, भविष्य की भी चिन्ता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि, बुद्धिमान लोग भूत-भविष्य को छोड़कर वर्तमान के अनुसार ही रहते हैं । ४७ ॥ पुनरिमानि सद्गुणान्वितानि वस्तूनि यत्र यत्र गच्छन्ति तत्र तत्रादरमेव लभन्ते, ततस्त्वया कापि चिन्ता न विधेया। फिर ये अच्छे गुणों से युक्त वस्तुएँ जहां जहां जाती हैं वहां वहां आदर ही पाती हैं, इसलिए तुम्हें फोई भी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। यतःक्योंकिशूराश्च कृतविद्याश्च, रूपवत्यश्च याः स्त्रियः । यत्र यत्र हि गच्छन्ति, तत्र तत्र कृतादराः ॥ ४८ ॥ शूर, विद्वान् और रूपवती ( खूब सूरत) स्त्रियां, ये जहां जहां जाते हैं, वहां वहां आदर-सम्मान पाते हैं ।। ४८ ॥ हे सुभगे! तेन यदि त्वं मदुक्तं करिष्यसि तदाहं त्वां निजसर्वकुटुम्बस्वामिनी करिष्यामि। तस्यैवंविधवचनतस्तया चतुरया ज्ञातम्-नूनमनेनैव दुरात्मना लोभाभिभूतत्वेन कामान्धलेन च मम स्वामी समुद्रमध्ये पातितोऽस्ति । हे सुन्दरी, इसलिए यदि तुम मेरे कही बात करोगी तो मैं तुमको अपने सारे परिवार की मलिकाइन बना दूंगा। उसकी इसतरह की बात से उस बुद्धिमतीने जाना-पक्का, इसी दुष्टने लोभ में आकर और काम-वासना में अन्धा होकर मेरे पति को समुद्र में गिरा दिया है। यदुक्तम्कहा भी है For Private And Personal Use Only
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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