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श्री कामघट कथानकम
यदुक्तम्कहा भी है - गते शोको न कर्त्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् । वर्तमानेन योगेन वर्तन्ते हि विचक्षणाः ॥४७॥
गए हुए का-बीते हुए का शोक नहीं करना चाहिए, भविष्य की भी चिन्ता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि, बुद्धिमान लोग भूत-भविष्य को छोड़कर वर्तमान के अनुसार ही रहते हैं । ४७ ॥
पुनरिमानि सद्गुणान्वितानि वस्तूनि यत्र यत्र गच्छन्ति तत्र तत्रादरमेव लभन्ते, ततस्त्वया कापि चिन्ता न विधेया।
फिर ये अच्छे गुणों से युक्त वस्तुएँ जहां जहां जाती हैं वहां वहां आदर ही पाती हैं, इसलिए तुम्हें फोई भी चिन्ता नहीं करनी चाहिए।
यतःक्योंकिशूराश्च कृतविद्याश्च, रूपवत्यश्च याः स्त्रियः । यत्र यत्र हि गच्छन्ति, तत्र तत्र कृतादराः ॥ ४८ ॥
शूर, विद्वान् और रूपवती ( खूब सूरत) स्त्रियां, ये जहां जहां जाते हैं, वहां वहां आदर-सम्मान पाते हैं ।। ४८ ॥
हे सुभगे! तेन यदि त्वं मदुक्तं करिष्यसि तदाहं त्वां निजसर्वकुटुम्बस्वामिनी करिष्यामि। तस्यैवंविधवचनतस्तया चतुरया ज्ञातम्-नूनमनेनैव दुरात्मना लोभाभिभूतत्वेन कामान्धलेन च मम स्वामी समुद्रमध्ये पातितोऽस्ति ।
हे सुन्दरी, इसलिए यदि तुम मेरे कही बात करोगी तो मैं तुमको अपने सारे परिवार की मलिकाइन बना दूंगा। उसकी इसतरह की बात से उस बुद्धिमतीने जाना-पक्का, इसी दुष्टने लोभ में आकर और काम-वासना में अन्धा होकर मेरे पति को समुद्र में गिरा दिया है।
यदुक्तम्कहा भी है
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