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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कामघट कथानकम् यतः क्योंकि— धर्मादेव धर्माद्धनं कुले सुखं जन्म, www.kobatirth.org रूपं, रूपं रूपाभिमतरतयः कान्ता पटखंडोव - तल-परिवृढत्वं सौभाग्य-श्रीरिति कुलं विश्व श्लाघ्यं सुवित्तं सौभाग्यं चिरायुस्ता रुपयं धर्माच्च धर्मः अच्छा कुल में जन्म, फैलने वाली कीर्ति, धन-दौलत, सुख-चैन, रूप-सौन्दर्य ये सब धर्म से ही होते हैं और धर्म स्वर्ग तथा मोक्ष को देता है ॥ ६३ ॥ रम्यं करण- पटुताऽऽरोग्यमायुविशालं, भक्तिमन्तः । सूनवो यशः क्षीर-शु फलमहो ! धर्म-वृ विपुलं यशः । वपुरपगदं ललित-ललना बलमविकलं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - वृक्षस्य सर्वम् ॥ ६४ ॥ सुन्दर रूप, इन्द्रियों की कार्यक्षमता, नीरोगता, विशाल आयु, अच्छी तरह प्रेम करने वाली सुन्दर स्त्री, आज्ञाकारी पुत्र, छः खण्ड पृथ्वी का आधिपत्य, दूध के जैसा उज्ज्वल यश और सौभाग्य की शोभा यह सब धर्म-वृक्ष का फल है ॥ ६४ ॥ स्वर्गापवर्गदः ॥ ६३ ॥ ४० For Private And Personal Use Only जातिरमला भोग्य-कमला । स्थानमतुलं, यदन्यच्च श्रेयो भवति भविनां धर्मत इदम् ॥ ६५ ॥ संसार में मान्य कुल ( में जन्म ), नीरोग शरीर, निर्दोष जाति, अच्छे धन-दौलत और भाग्य, सुन्दर स्त्री और लक्ष्मी का भोग, दीर्घ आयु, तरुणाई ( जबानी ), अटूट बल और अच्छे स्थान तथा अन्य दूसरे जो पुण्यात्माओं के अच्छे होते हैं वे सबके सब धर्म से ही होते हैं ॥ ६५ ॥ अहो ! सर्वतोऽधिको धर्मस्य प्रभावो नत्वन्यस्येति सर्वैर्नगरलोकैरपि धर्मोऽङ्गीकृतां मानितश्च । अरे सब से अधिक धर्म का ही प्रभाव है दूसरे का नहीं, इसतरह नगर के सभी लोगों ने भी धर्म को स्वीकार किया और संमान भी किया
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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