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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra यतः- ४५ श्री कामघट कथानकम् इतने लोगों को तुमने किसकी कृपा से भोजन कराया। मंत्रीने कहा- महा प्रभाव - शाली देवता से अधिष्ठित कामघट के प्रभाव से । तब राजा ने कहा- वह कामघट मुझे दे दो, क्योंकि, शत्रु की सेना से परास्त होने के समय में वह कामघट मेरा अधिक उपयोगी होगा । तब मंत्रीने कहा- आप अधर्मी हैं, इसलिए आपके पास वह कामघट नहीं रह सकता । राजाने कहा - एकबार तो तुम मुझे दो पीछे मैं खूब संभालकर उसे रखूंगा और मैं तुम्हारा उपकार मानूंगा। मंत्रीने कहा- अब इसके आगे मैं आपको क्या कहूं ? क्योंकि, में आपका मंत्री हूं, इसलिए देता हूं, लेकिन तीन दिन तक आप इसकी अच्छी निगरानी के साथ रक्षा करना यह मैं आपको साफ कहे देता हूँ, इसके आगे अब मेरा कोई दोष नहीं, यह कहकर मंत्रीने वह कामघट राजा को दे दिया । राजाने भी अत्यन्त होसियारी से अपने महल के भांडागार में उसे रखा और चारों ओर उसकी रक्षा के लिए हजारो अच्छे लड़ाकू योद्धाओं को और किच, तलवार वाली सेना भी तैनात कर दी । क्योंकि सामी सूरा चार जे संपत्ति पारखडे, www.kobatirth.org करि, व्यसने स्मशाने च, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कायर स परिहर ते चारे चउसट्ठि ॥ ६० ॥ राजा लोग शूर-वीर को ही अपना चार ( चाकर - अंगरक्षक ) बनाते हैं और कायर ( डर पोक ) शस्त्रधारी को छोड़ देते हैं, वास्तव में जो संपत्ति के पारखी-संरक्षक हों वे ही चतुर शस्त्रधारी कलाकुशल राजा के चार के योग्य हैं ॥ ६२ ॥ अतो युष्माभिर्मे बान्धवरूपैः सेवकैरिदं कार्यं सावधानतया विधेयम् । इसलिए तुम लोग मेरे बान्धव रूप सेवक हो, यह कार्य सावधानी से करना चाहिए । उक्तं च और कहा भी है आतुरे राज-द्वारे प्राप्त, दुर्भिक्षे शत्रु-निग्रहे । यस्तिष्ठति स For Private And Personal Use Only बान्धवः ॥ ६१ ॥ संकट काल उपस्थित होने पर, दुष्काल में, शत्रु की दबाव होने पर, राज दरबार में और स्मशान में जो ( मदद करने के लिए) खड़ा रहता है, वहीं ( वास्तव में ) बान्धव ( करकटुम्ब, भाई-बन्धु ) है ।। ६१ ।।
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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