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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कामघट कथानकम् धर्म चिन्तामणि के समान श्रेष्ठ है, धर्म दूसरा कल्पवृक्ष है, धर्म कामधेनु है, धर्म सब कुछ ( अच्छा) देने वाला है ॥३॥ धर्मतः सकलमंगलावली, धर्मतः सकलसौख्यसम्पदः । धर्मतः स्फुरति निर्मलं यशो, धर्म एव तदहो! विधीयताम् ॥ ४॥ धर्म से सारे मंगलों की श्रेणी होती है, धर्म से सारी सुख-संपत्ति प्राप्त होती है, धर्म से यश निर्मल होकर चमकता है, अतएव हे लोगो ! धर्म ही किया करो॥४॥ धर्माजन्म कुले शरीर–पटुता सौभाग्यमायुर्बलं, धर्मेणैव भवन्ति निर्मलयशोविद्यार्थसंपत्तयः । कान्ताराञ्च महाभयाच्च सततं धर्मः परित्रायते, धर्मः सम्यगुपासितो भवति हि स्वर्गापवर्गप्रदः ॥५॥ उत्तम कुल में जन्म, नीरोग शरीर, सुन्दर भाग्य, अच्छी आयु पूर्ण बल ये सब धर्म से होते हैं, निर्मल यश, विद्या और धन-दौलत धर्म से ही होती है और महा भयकारी बड़ा भारी जंगल से धर्म हमेसा रक्षा करता है, अच्छी तरह उपासना किया हुआ धर्म निश्चय करके स्वर्ग और मोक्ष को देने वाला होता है ।। ५ ।। व्यसनशतगतानां क्ल शरोगातुराणां, मरणभयहतानां दुःखशोकार्दितानाम् । जगति बहुविधानां व्याकुलानां जनानां, शरणमशरणानां नित्यमेको हि धर्मः ॥ ६ ॥ सैकडों व्यसन ( बुरी आदत ) में फंसे हुए, क्लेश और रोग से दुःखी, मरण के भय से डरे हुए, दुःख और शोक से पीड़ित, अनके तरह से व्याकुल ( बेचैन ) जिनके कोई शरण ( आश्रय-सहारा) नहीं है ऐसे लोगों के नित्य धर्म ही एक शरण (सहारा) है ।। ६ ।। धर्मोऽयं धनबल्लभेषु धनदः कामाथिनां कामदः, सौभाग्यार्थिषु तत्प्रदः किमपरं पुत्रार्थिनां पुत्रदः । For Private And Personal Use Only
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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