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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्पादकीय आज यह 'कामघट कथानक' हिन्दी अनुवाद-युक्त छपवाकर प्रकाशित किया जा रहा है। इसके प्रणेता कोई माननीय प्राचीन जैनाचार्य हैं। कुछ वर्ष पूर्व श्रीमद् विजय राजेन्द्र सुरीश्वरने जैन और जेनेतर भारतीय आचार्यवर्यों के उपदेश-प्रद सूक्तियों को इसमें यथास्थान जोड़ कर इसको कुछ परिवर्द्धित रूप में प्रकाशित करवाये थे । भारतीय साहित्यों की सृष्टि आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक विषय को लेकर परम्परा से चली आरही है । इसका प्रबल - प्रमाण विश्व के सब से प्राचीन ग्रन्थ " ऋग्वेद" है । इन त्रिविध रचनाओं के बाबजूद भारतीय ऋषियों, मुनियों और विद्वानों ने आध्यात्मिक विषय को ही अधिकतर उपादेय माना है । आज की बुद्धि की बाहरी ऊँची उड़ान के युग में हमारी आध्यात्मिकता अधिक दब गई है और हम सदाचार से अलग होकर मानवता से कोशों दूर हो गए हैं। हमारा साहित्य निर्माण भी सदाचार रहित, गंदे, अश्लील, विलासिता पूर्ण होता जा रहा है। नतीजा यह है कि स्वर्ग के सहोदर भारत भूमि में सर्वत्र आज हाय हाय का कुहराम मचा हुआ है। पर अब वे दिन अधिक दूर नहीं कि जब विश्व के मानव सदाचारी बनकर सत्य और अहिंसा की शरण ले, गाँधी बाद को अपनावे | वास्तव में मानव जीवन का प्रथम सुदृढ़-सोपान सदाचार है, सदाचार ही मानव-जीवन- भित्ति की बेजोड़ मजबूत नीव है । सदाचार में ज्ञान और क्रिया के संयोग के साथ साथ बाह्य-शुद्धि और अन्तः शुद्धि का समन्वय है। सदाचार में आत्म-कल्याण भावना के साथ साथ देश, समाज, राष्ट्र और विश्व के कल्याण-भावना का भव्य भाव निहित है। सदाचार से प्रेय और श्रेय की प्राप्ति होती है। सदाचार भू- कल्पतरु है । सारांश यह कि - आदर्श - मानव-जीवन का सार संसार में सदाचार ही है । पाप सदाचार ही को धर्म या पुण्य कहते हैं और बुरे आचरण को दुष्कृत या पाप कहते हैं । का परिणाम दुःख और पुण्य का परिणाम सुख होता है, यह एक सार्वभौम मान्य- मानव- सिद्धान्त है । प्रस्तुत पुस्तक पापबुद्धि राजा और धर्मबुद्धि मंत्री के बहाने पाप-पुण्य के कथानक रूप में लिखी गई है, जो मानव जीवन को सफल बनाने के लिए मानव को सदाचारी बनने के ही प्रोत्सारित करती है । लिए कुछ अंश में अवश्य इसमें मुख्यतः दो ही कथाएँ हैं। दोनों का उद्देश्य एक ही है- मानव समाज में धर्मबुद्धि का यानी सदाचार का प्रचार और पापबुद्धि का अर्थात् दुष्टाचार का निरोध। पहली कथा में सदाचारी, For Private And Personal Use Only
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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