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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कामंघट कथानकम तस्य कालस्याऽग्रे तीर्थकरचक्रवर्तिवलदेववासुदेवप्रतिवासुदेवादिसर्वशक्तिमद्देवानामपि बलं न प्रचलति । उस काल के आगे तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव आदि सर्व शक्तिमान् देवताओं का भी बल नहीं चलता है। यत: क्योंकिनो विद्या न च भेषजं न च पिता नो बान्धवा नो सुताः, नाभीष्टा कुलदेवता न जननी स्नेहानुबन्धान्विताः । नार्था न स्वजनो न वा परिजनः शारीरिकं नो बलं, नो शक्ताः श्वशुरः स्वसा सुरवराः सन्धातुमायुध्रुवम् ॥ ८६ ॥ न विद्या, न औषध और न माता-पिता, न भाई-बन्धु, न लड़के लड़की, न अपने अभीष्ट कुल देवता और न मित्रवर्ग, न धन, न अपना नौकर चाकर और न पड़ोसी, न शरीर का बल न श्वसुर, न बहिन और न बड़े देव अथात् कोई भी आयु को जोड़ ( बढ़ा ) नहीं सकते ।। ८६ ।। __ अतोऽयं महतो महानुभावानपि प्राणिनो भक्षयति । पुनस्तदनऽन्येषां पामरप्राणिनां का गणना ? इसलिए, यह विकराल काल महापुरुषों के महान् प्राणों को भी भक्षण कर डालता है, फिर दूसरे पामर प्राणियों की कथा ही क्या ? तदुक्तं चकहा भी हैये पाताल-निवासिनोऽसुरगणा ये स्वैरिणो व्यन्तराः, ये ज्योतिष्क्व-विमानवासि-विबुधास्तारान्तचन्द्रादयः । सौधर्मादि-सुरालये सुरगणा ये चापि वैमानिकास्ते सर्वेऽपि कृतान्त-वासमवशाः गच्छन्ति किं शोच्यते ? ॥७॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020435
Book TitleKamghat Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishr
PublisherNagari Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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