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कल्पसूत्र
मळ
९७॥
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वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सव्वओ समंता सक्कोसं जोयणं ओग्गहं ओगिण्हित्ता णं चिठ्ठिउं अहा-लंदमवि ओग्गहे ॥सू. ९॥ वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सव्वओ समंता सक्कोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पडि-नियत्तए ।सू. १०।। जत्थ नई निच्चोयगा निच्च-संदणा, नो से कप्पइ सव्वओ समंता सक्कोसं जोयणं भिक्खा-यरियाए गंतुं पडि-नियत्तए ॥सू. ११ एरावई कुणालाए, जत्थ चक्किया सिया, एगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा-एवं चक्किया एवं णं कप्पइ सव्वओ समंता सक्कोसं जोयणं भिक्खा-यरियाए गंतुं पडि-नियत्तए ।सू. १२॥ एवं च नो चक्किया, एवं से नो कप्पइ सव्वओ समंता सक्कोसं |जोयणं भिक्खा-यरियाए गंतुं पडिणियत्तए ।सू. १३।।
वासावासं पज्जोसवियाणं अत्थे-गइयाणं एवं वुत्त-पुव्वं भवइ-दावे भंते ! एवं से कप्पइ दावित्तए, नो से कप्पइ पडि-गाहित्तए ॥सू. १४|| वासावासं पज्जोसवियाणं अत्थे-गइयाणं एवं वुत्त-पुव्वं भवइ-पडिगाहेहि भंते ! एवं से कप्पइ पडि-गाहित्तए, नो से कप्पइ दावित्तए ॥सू. १५|| वासावासं पज्जोसवियाणं अत्थे-गइयाणं एवं वुत्त
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