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कल्पसूत्र
मल
॥ ७२ ॥
अरहओ जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणस्स एगे सागरोवमसए विइकते पन्नलुि च, सेसं जहा मल्लिस्स ॥११।।सू.१९४।। सीअलस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणस्स एगा सागरोवमकोडी तिवास-अद्ध नवम-मासाहिअ-बायालीस-वास-सहस्से हिं ऊणिआ विइकंता, एयंमि समए महावीरो निव्वुओ, तओऽवि य णं परं नव वास-सयाई विइक्ताई, दसमस्स य वास- सयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ||१०||सू. १९५।।
सविहिस्स णं अरहओ जाव सव्व-दक्ख-प्पहीणस्स दस सागरोवम-कोडिओ विइकंताओ सेसं जहा सीअलस्स, तं च इम-ति-वास-अद्धनवम-मासाहिय-बायालीसवास-सहस्सेहिं ऊणिआ विइक्कंता-इच्चाइ ।।९।।सू.१९६।। चंदप्पहस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणस्स एगं सागरोवम-कोडि-सयं विइकंतं, सेसं जहा सीअलस्स, तं च इम-तिवास-अद्धनवम-मासाहिय-बायालीस-वास-सहस्सेहिं-ऊणग-मिच्चाइ।।८।।सू.१९७|| सुपासस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणस्स एगे सागरोवम-कोडि-सहस्से विइकं ते, सेसं जहा सीअलस्स, तं च इम-तिवास-अद्ध नवम
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