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कल्पसूत्र
मूळ
||| ३३ ॥
चित्र
नं. ५
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* कोडुंबिय-पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी ॥ सू. ६४ ॥ खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया !
अठंग-महा-निमित्त-सुत्तत्थ-धारए विविह-सत्थ-कुसले सुविण-लक्खण-पाढए सद्दावेह, तए णं ते कोडुबिय-पुरिसा सिद्धत्थेणं रन्ना एवं वुत्ता समाणा हठ्ठतु जाव हियया करयल जाव पडिसुणंति ।। सू. ६५ ।। (चिा नं. ५)
पडिसुणित्ता सिद्धत्थस्स खत्तियस्स अंतिआओ पडि-निक्खमंति, पडि-निक्खमित्ता कुंडग्गामं नगरं मझं मज्झेणं जेणेव सुविण-लक्खण-पाढगाणं गेहाइं तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सुविण-लक्खण-पाढए सद्दावेंति ।। सू. ६६ ।। तएणं ते सुविण- लक्खण-पा ढगा सिद्धत्थस्स खत्तिअस्स कोडुबिअ-पुरिसेहिं सद्दाविया समाणा हठ्ठतुठ्ठ जाव हियया, पहाया कय-बलि-कम्मा, कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता, सुद्ध-पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवराई परिहिआ, अप्पमहग्घा-भरणा-लंकिय-सरीरा, सिद्धत्थय-हरिआलिया -कयमंगल-मुद्धाणा, सएहिं सएहिं गेहेहिंतो निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता खत्तिय-कुंडग्गामं नगरं मझं मज्झेणं जेणेव सिद्धत्थस्स रन्नो भवण-वर-वडिंसग-पडिदुवारे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भवण-वर-वडिंसगे पडिद्वारे एगओ मिलंति, एगओ मिलित्ता जेणेव बाहिरिया
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