________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
कल्पसूत्र
11 88 11
सोमं, सोमाकारं, लीलायंतं, नह-यलाओ ओवयमाणं, नियग-वयण - मइ-वयंतं, पिच्छइ, सा गाढ - तिक्खग्ग- नहं, सीहं वयण - सिरी-पल्लव-पत्त - चारु - जीहं ३ ||सू. ३५||
-
-
तओ पुणो पुन्नचंद - वयणा उच्चागय-ठ्ठाण - लठ्ठ - संठिअं, पसत्थरूवं, सुपइठ्ठिअकणगमय - कुम्म - सरिसो- वमाण-चलणं, अच्चुण्णय - पीण - रइअ - मंसल - उवचिअ-तणुतंब निद्ध नहं, कमल पलास - वरंगुलिं सुकुमाल - कर-चरणं कोमल कुरुविंदा-वत्त- वट्टाणु - पुव्व - जंघं, निगूढ - जाणुं, गय - वर - कर - सरिस - पीवरोरुं, चामीकरइअ - मेहला - जुत्त-कंत-विच्छन्न-सोणिचकं, जच्चंजण - भमर - जलय-पयर - उज्जुअ तणुअ आइज्ज - लडह
सम -
संहिअ
सुकुमाल
मउअ - रमणिज्जकरयल - माइ अ
- रोमराई, नाभि-मंडल - सुंदर - विसाल-पसत्थ-जघणं, पसत्थ-तिवलिअ - मज्झं नाणा- मणि-कणग- रयण-विमल - महा-तवणिज्जा- भरणभूसण- विराइअ-मंगु-वंगिं, हार- विरायंत- कुंदमाल - परिणद्ध-जलजलित-थणजुअलविमल - कलसं, आइअ - पत्तिअ - विभूसिएणं सुभग- जालुज्जलेणं मुत्ता - कला-वणं उरत्थ- दीणार- माल-विरइएणं कंठमणि- सुत्तएण य कुंडल-जुअलुल्लसंत-अंसोवसत्त
-
www.kobatrth.org
-
-
-
For Private and Personal Use Only
-
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
锻
起
मूळ
।। १९ ।।