SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandir - का यह आचार है, अर्थात् भूत, वर्तमान और भविष्य इंद्रों का यह कर्तव्य है कि उस प्रकार के स्वरूप वाले अन्त्य, तुच्छादि कुलों से अरिहन्तादि महान् पुरुषों के उस प्रकार के उग्र, भोग, राजन्य उत्तम कुल जातिवंश में लाकर रक्खें । इस लिए . अपने कर्तव्य के अनुसार मुझे भी श्री ऋषभदेव स्वामी के वंश के क्षत्रियों में विख्यात काश्यप गोत्रीय सिद्धार्थ राजा की. वाशिष्ट गोत्रीया पत्नी त्रिशला की कुक्षि में प्रभु महावीर को रखना चाहिये और जो त्रिशला क्षत्रियाणी का पुत्रीरूप गर्भ 3 है उसे वहां से लेकर जालंधर गोत्रीया देवानन्दा की कक्षि में रखना चाहिये । गर्भपरावर्तन इस प्रकार का विचार कर इंद्र अपने सेनापति हरिणैगमषी देव को बुलवाता है और अपने मन में पैदा हुआ संकल्प आद्योपान्त उसके सामने कह सुनाता है । फिर कहता है कि हे देवानुप्रिय ! यह देवेन्द्रों का कर्तव्य है इसलिए तूंजा और देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि से लेकर भगवन्त को त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में रख LG दे और जो त्रिशला का गर्भ है उसे देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में रख दे । इस प्रकार कार्य कर के शीघ्र ही मेरी आज्ञा को पालन करने का समाचार मुझे वापिस दे । पैदल सेना के स्वामी हरिणैगमेषी देवने इन्द्र का & आज्ञा बडी उत्कृष्ट और आज्ञा सुनकर हृदय में हर्षधारण के हरिणैगमेषी देवसे हाथ जोड कर बोला जैसी " देवाज्ञा, यों कहकर इंद्र के वचन को स्वीकार करता है । फिर ईशान कौन में जाकर वैक्रिय शरीर 000000 For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy