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श्री कल्पसूत्र
हिन्दी
अनुवाद
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धारिणी देवी की कुक्षि में चौरासी लाख पूर्व की आयुवाला प्रियमित्र नामक चक्रवर्ती हुआ । पोट्टिलाचार्य के पास दीक्षा | लेकर एक करोड वर्ष तक दीक्षा पर्याय पाल चौबीसवें भव में महाशुक्र देवलोक में देव हुआ। वहां से पच्चीसवें भव में इस भरत क्षेत्र की छत्रिका नगरी में जितशत्रु राजा की भद्रा नामा रानी की कुक्षि से पच्चीस लाख वर्ष की आयुवाला नन्दन नामक पुत्र हुआ। पोट्टिलाचार्य के पास दीक्षा ग्रहण कर जीवन पर्यन्त मासक्षमण की तपस्या कर के वीस स्थानक की आराधना द्वारा तीर्थकर नामकर्म निकाचित कर और एक लाख वर्ष तक चारित्र पर्याय पाल कर मासिक संलेखना न से मृत्यु पाकर छब्बीसवें भव में प्राणत कल्प में पुष्पोत्तरावतंसक नामा विमान में बीस सागरोपम की स्थितिवाला
। वहां से चलकर पूर्व में मरीचि के भव में उपार्जन किये और भोगने में कुछ शेष रहे हुए नीच गोत्र कर्म के प्रभाव से 'सताईसवें भव में ब्राह्मणकुण्ड ग्राम नगर में ऋषभदत्त ब्राह्मण की देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षी में प्रभु अवतरे हैं । इसी कारण इंद्र यह विचार करता है कि इस प्रकार नीच गोत्र कर्म के उदय से अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेवादि का अवतरण तो तुच्छादि नीच गोत्र में हुआ है, होता है, और होगा अर्थात् उन हलके कुलों में पूर्वोक्त उत्तम पुरूष भूत, 'वर्तमान और भविष्य काल में माता के गर्भ में आये और आयेंगे परन्तु उन कुलों में योनि द्वारा उनका जन्म न हुआ, न होता है और न कभी होगा । अब भगवान महावीर प्रभु जंबूद्वीप में भरतक्षेत्र में, ब्राह्मण कुण्ड ग्राम नगर कुक्षि में गर्भतया अवतरे हैं। इस लिए देवताओं के राजा शक्रेंद्र
श्रमण
में ऋषभदत्त ब्राह्मण की स्त्री देवान्दा
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व्याख्यान