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श्री कल्पसूत्र
दूसरा
हिन्दी
व्याख्यान
अनुवाद
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२ वह अनेक भवोंद्वारा संसार परिभ्रमण करता रहा, वे भव इन स्थूल सत्ताईस भवों में नहीं गिने हैं । वहां से छट्टे भव में
स्थूणा नगरी में बहोत्तर लाख पूर्व की आयुवाला पुष्प नामक ब्राह्मण हुआ और त्रिदंडी होकर मरा । सातवें भवमें सीध गर्म देवलोक में मध्यम स्थिति का देव हुआ । वहां से आठवें भव में चैत्य ग्राम में साठ लाख पूर्व की आयुवाला अग्निद्योत नामा ब्राह्मण हुआ और अन्त में त्रिदंडी होकर मरा । वहां से नव में भव में ईशान देवलोक में मध्यम स्थितिवाला देव हुआ । वहां से च्यव कर दशवें भव में मंदर ग्राम में छप्पन लाख पूर्व की आयुवाला अग्निभूति नामक ब्राह्मण हुआ और अन्त ॐ में त्रिदंडी होकर मरा । ग्यारहवें भव में तीसरे कल्प में मध्यम स्थितिवाला देव हुआ । बारहवें भव में श्वेतांबी नगरी में
चवालिस लाख पूर्व की आयुवाला भारद्वाज नामक ब्राह्मण हआ और अन्त में त्रिदंडी होकर मरा । तेरहवें भव में महेन्द्र - कल्प में मध्यम स्थितिवाला देव हुआ । वहां से फिर कितने एक काल तक संसार में परिभ्रमण कर चौदहवें भवमें राजगृह #नगर में चौतीस लाख पूर्व की आयुवाला स्थावर नामक ब्राह्मण हुआ । अन्त में त्रिदंडी होकर पंद्रहवें भव में ब्रह्मलोक नामा 23
स्वर्ग में मध्यम स्थितिवाला देव हुआ । सोलहवें भव में कोटी वर्ष आयुवाला विश्वभूति युवराज पुत्र हुआ । संभूति मुनि के पास चारित्र ले कर एक हजार वर्ष तक घोर तप किया । एक समय मासोपवास के पारणे के लिए मथुरानगरी में
गोचरी जा रहा था, मार्ग में एक गाय का सींग लगने से तपस्या से कृश होने के कारण जमीन पर गिर पड़ा । यह * देख कर वहां पर शादी करने के लिए आये हुए विशाखानन्दी नामक उसके चाचा के पुत्र ने उसका उपहास्य *
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