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श्री कल्पसूत्र
प्रथम
हिन्दी
व्याख्यान
अनुवाद
112011
-तूं वैताढय पर्वत पर सुमेरुप्रभ नामक हाथी था । वह 6 दांतवाला श्वेतवर्णीय और एक हजार हथनियों का स्वामी था।
एक बार दावानल से भयभीत हो भागते हुए को प्यास लगने से बहुत कीचड़वाला सरोवर देखने में आया । मार्ग न जानने से पानी पीने जाते हुए वह वहां दलदल में न फंस गया । अब जल और थल दोनों से लाचार हो गया । फिर उसने पूर्वशत्रु हाथियों ने वहां आकर उस पर दांतों के प्रहार किये । उनकी वेदना सात दिन तक सहकर एक सौ बीस वर्ष का आयु पूर्ण कर विन्ध्याचल पर फिर तूं लाल रंग का चार दांतवाला और सात सौ हाथनियों का स्वामी हाथी हुआ । वहां पर भी एक बार दावानल लगा. उसे देख तुझे जातिस्मरण ज्ञान पैदा हुआ । पूर्वभव का स्मरण होने से दावानल से बचने के लिए तूंने एक योजन प्रमाणवाला एक मंडल बनाया । वर्षाकाल से पहले, मध्य में और वर्षा के अन्त में उस मंडल में जमे हुए धास
तृण आदि को तूं उखाड कर फेंक देता था । एक दिन दावानल लगने पर भयभीत हो उस जंगल के तमाम प्राणी अपनी * जान बचाने के लिए उस मंडल में आ बैठे । तूं भी बाहर से शीघ्र ही आ गया । शरीर में खुजली करने की इच्छा से तूने
- अपना पैर उठाया । उस वक्त दूसरी जगह पर भीड के कारण अत्यन्त तंग हुआ एक खरगोश उस जगह आराम से आ प्र बैठा । खुजली कर पैर नीचे रखते समय तेरी नजर उस खरगोश पर पड़ गई । उस पर दया आने से तूं दो दिन तक पैर
अधर किये खड़ा रहा । जब दावानल शांत हो गया और सब प्राणी अपने अपने स्थान पर चले गये तब पैर नीचे रखते समय खून जमजाने के कारण तूं जमीन पर गिर पड़ा । फिर तीन दिन तक भूख प्यास की पीडा
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