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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद | 113 || 40500405004050040 www.kobatirth.org काश्यप गोत्रीय इक्कीस तीर्थकर इक्ष्वाकु कुल में उत्पन्न हुए तथा गौतम गोत्रीय बीसवें श्री मुनिसुव्रत और एक बावीसवें श्री नेमिनाथ ये दो तीर्थकर हरिवंश कुल में उत्पन्न हुए । इस प्रकार तेईस तीर्थकरों के हो जाने के पश्चात् श्रमण भगवान् श्री महावीर प्रभु हुए हैं। पूर्व के तीर्थकरों द्वारा कथन किये हुए अन्तिम तीर्थकर श्री वीरप्रभु ने ब्राह्मणकुंड नामा ग्राम में कोड़ाल गोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण की देवानन्दा नाम की जालंधर गोत्रीया स्त्री की कुक्षि में उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र को चंद्र योग प्राप्त होने पर गर्भरूप से अवतरे । जिस समय भगवंत गर्भ में अवतरे उस वक्त वे तीन ज्ञानयुक्त थे। स्वर्ग से अपने चवने का समय जानते थे, परन्तु च्यवमान अर्थात् च्यवनकाल को नहीं जानते न थे, क्यों कि वह एक समय मात्र सूक्ष्म काल होता है । "आंख मीच कर खोलने में असंख्य समय काल बीत जा हैं " उनमें से वह एक समय काल समझना चाहिए। मैं च्यव कर यहां आ गया हूं यह प्रभु जानते हैं । जिस रात्रि को श्रमण भगवान् महावीर प्रभु जालंधर गोत्रीया देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में गर्भतया • उत्पन्न हुए उस रात्रि में वह देवानन्दा ब्राह्मणी अपनी शय्या में अति निद्रा और अति जागरण अवस्था में नहीं थी अर्थात् वह अल्प निद्रावाली अवस्था में (जिन का आगे चल कर वर्णन करेंगे) ऐसे श्रेष्ठ कल्याणकारी उपद्रव को हरने वाले, धन धान्य को करनेवाले, मंगलमय शोभायुक्त चौदह स्वप्नों को देखकर जाग उठी । उन स्वप्नों का 'गय वसह' इत्यादि गाथा से आगे विस्तार पूर्वक वर्णन किया जायगा। यहां पर इतना For Private and Personal Use Only 40 500 40 5 4050040 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम व्याख्यान 13
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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