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श्री कल्पसूत्र हिन्दी
नौवा
व्याख्यान
अनुवाद
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है उसे पूछे बिना विगय खाना नहीं कल्पता । आचार्य या जिसे गुरू मान कर विचरता हैं उसे पूछ कर विगय 3 खाना कल्पता है । किस तरह पूछना सो कहते हैं-हे पूज्य ! यदि आप की आज्ञा हो तो अमुक विगय इतने प्रमाण में और इतने समय तक खाना इच्छता हूं। यदि वह आचार्यदि उसे आज्ञा दें तो वह विगय उसे कल्पती है अन्यथा -
नहीं । शिष्य प्रश्न करता है कि-हे पूज्य ! ऐसा क्यों कहा गया है ? गुरू उत्तर देते हैं कि आचार्यादि लाभालाभ * जानते हैं 1461
चातुर्मास रहे साधु वात, पित्त और कफादि संनिपात संबन्धी रोगों की चिकित्सा कराना चाहे तो आचार्यादि से पूछ कर कराना कल्पता है । पहले के समान ही सब कुछ समझना चाहिये । वह चिकित्सा आतुर, वैद्य, प्रतिचारक और भैषज्यरूप चार प्रकार की है । प्रत्येक के फिर चार -चार भेद कहे हैं । दक्ष, शास्त्रार्थ को
जाननेवाला, दृष्टकर्मा और शुचि ये चार प्रकार भिषक् के हैं । बहुकल्प, बहुगुण, संपन्न और योग्य ये चार प्रकार - औषध के हैं । अनुरक्त्त, शुचि, दक्ष और बुद्धिमान् ये चार प्रकार प्रतिचारक के हैं । तथा आढय-धनवान्, रोगी, । भिषक् के वश और ज्ञायक-सत्यवान् ये चार प्रकार रोगी के हैं 1491
चातुर्मास रहे साधु यदि कोई प्रशस्त, कल्याणकारी, उपद्रव को हरनेवाला, धन्य करनेवाला. मंगल - करनेवाला, शोभा देनेवाला और महाप्रभावशाली तपकर्म अंगीकार करके विचरना चाहे तो गुरू आदिको पूछ कर
करना कल्पता है । इत्यादि पहले जैसे ही सब कहना चाहिये 1501
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