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श्री कल्पसूत्र
नौवा
हिन्दी
व्याख्यान
अनुवाद
1114511
चार चातुर्मास रहे हुए किसी साधु को पहले से ही गुरूने कहा हुआ हो कि हे शिष्य ! बीमार साधु को अमुक वस्तु ला देना तब उस साधु को वस्तु ला देनी कल्पती है परन्तु उसे वह बरतनी (वापरनी)नहीं कल्पती 11414 चातुर्मास रहे साधु को यदि प्रथम से गुरूने कहा हुआ हो कि हे शिष्य ! अमुक वस्तु तू स्वयं लेना तो उसे लेनी कल्पती है । पर उसे दूसरे को देनी नहीं कल्पती 115। चातुर्मास रहे साधु को गुरू ने प्रथम से कहा हुआ हो कि हे शिष्य ! तू ला देना और तू स्वयं भी बरतना हो वह वस्तु उसे कल्पती है 1161
5 (पांच) चातुर्मास रहे साधु और साध्वियों को विगय लेना नहीं कल्पता । किन साधुओं को नहीं कल्पता ? जो हष्टपुष्ट हैं, तरूण अवस्था से समर्थ हैं, निरोगी हैं, आरोग्य बलवान् साधुओं को जो आगे कथन की जानेवाली रस से प्रधान विगय है बारंबार खाना नहीं कल्पता । वे विगय ये समझना चाहिये-दूर 11, दही 2, घी 4, तेल 5, गुड़ 6, कडाविगय के ग्रहण करने से कारण पड़ने पर भक्षण करने योग्य विगय कल्पती हैं, ऐसा समझना चाहिये । और छः के ग्रहण करने से किसी दिन पक्वान भी ग्रहण किया जाता है । पूर्वोक्त्त विगय सांचयिक और असांचयिका ऐसे दो प्रकार की हैं । उसमें दूध, दही और पक्वान ये नामवाली बहुत समय तक नहीं रक्खी जा सकी सो असांचयिका जानना चाहिये । रोगादि के कारण गुरू बाल आदि को उपग्रह करने के निमित्त या श्रावक के निमंत्रण से वह लेना कल्पता है । घी, तेल, और गुड़
ये तीन विगय सांचयिका समझना चाहिये । उन तीन विंगयों को लेने समय श्रावक से कहना कि अभी बहुत 5समय तक
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