________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्री कल्पसूत्र हिन्दी
नौवा
व्याख्यान
अनुवाद
1114211
अर्थात्- वर्षा काल का एक मास और बीस दिन गये बाद इस वचन को बाधा पहुचती है । है देवानुप्रिय ! यदि
विचार करें तो ऐसा नहीं है, क्योंकि यों तो आश्विन मास की वृद्धि होने से चातुर्मासिक कृत्य दूसरे आश्विन मास प्र की शुक्ल चतुर्दशी को ही करना चाहिये, क्यों कि कार्तिक मास की शुक्ल चतुर्दशी को करने से सौ दिन हो जाते
हैं और इससे 'समणे भगवं महावीरे वासाणं सीसइराए मासे विइक्कते सित्तर राइदिएहि सेसेहि' अर्थात । श्रमण भगवान् श्री महावीर ने वर्षाकाल का एक मास और बीस दिन गये बाद और सत्तर दिन शेष रहने पर पर्युषणा की, समवायांग सूत्र के इस वचन को बाधा आती है । यह भी नहीं करना चाहिये कि चातुर्मास आषाढ आदि मास से प्रतिबद्ध है, इससे कार्तिक चातुर्मास का कृत्य कार्तिक मास की शुक्ल चतुर्दशी को ही करना युक्त है और दिनों की गिनती के विषय में अधिक मास कालचूला के तौर पर होने से उसकी अविवक्षा को लेकर सत्तर
ही दिन होते हैं तो फिर समयायांग सूत्र के वचन को कैसे बाधा आती है ? उत्तर देते हैं कि जैसे - चातुर्मास आषाढ आदि मास से प्रतिबद्ध है वैसे ही पर्युषणा भी भादवा मास से प्रतिबद्ध है इस कारण भादवे LR में ही करना चाहिये । दिनों की गिनती के विषय में अधिक मास कालचूला के तौर पर है इस से उन्हें 10
गिनती में न लेने से पचास ही दिन होते हैं. अब फिर अस्सी की तो बात ही कहां? पर्युषणा भाद्रमास से
प्रतिबद्ध है यों कहना भी अयुक्त नहीं है, क्यों कि ऐसा ही बहुत से आगमों में प्रतिपादन किया हुआ है * । दृष्टांत के तौर पर 'अन्यदा पर्युषणा का दिन आने पर आर्यकालसूरि ने शालिवाहन को कहा कि
For Private and Personal Use Only