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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 4050040054050040 www.kobatirth.org मालूम न होनेवाली यह है- जिसमें चातुर्मास के योग्य पीठ फलकादि प्राप्त करने पर भी कल्प में कथन किये मुजब द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावरूप स्थापना की जाती है और वह भी आषाढ पूर्णिमा के भीतर ही की जाती है । परन्तु योग्य क्षेत्र के अभाव में पांच पांच दिन की वृद्धि से दश पर्वतिथि के क्रमद्वारा श्रावण वदी अमावस्या तक ही की जाती है । गृहीज्ञाता-गृहस्थी को मालूम होनेवाली भी दो प्रकार की है । एक वार्षिक कृत्यों से युक्त और दूसरी गृही ज्ञात मात्रा सिर्फ गृहस्थो को मालूम होनेवाली । उसमें भी वार्षिक प्रतिक्रमण, • लोच, अट्टम का तप, सर्व जिनेश्वरो की भक्ति पूजा और परस्पर संघ से क्षमापना, ये सांवत्सरिक कृत्य है । इन कृत्यों सहित पर्युषणा भादवा सुदी पंचमी के दिन ही और कालिकाचार्य के उपदेश से चतुर्थी के दिन भी की जाती है। सिर्फ गृहस्थों को मालूम होनेवाली यह है-जिस वर्ष में अधिक मास हो उस वर्ष में चातुर्मास दिन से लेकर बीस दिन बाद मुनि 'हम यहां रहे हैं पूछनेवाले गृहस्थों के आगे ऐसा कहते हैं । सो भी जैन पंचांग के अनुसार है। क्यों कि उसमें युग के मध्य में पौष तथा युग के अन्त में आषाढ मास की वृद्धि होती है, किन्तु अन्य किसी मास की वृद्धि नहीं होती । वह पंचांग आज कल बिल्कुल प्राप्त नहीं होता । इस कारण आषाढ पूर्णिमा से पचास दिन पर पर्युषण करना युक्त है ऐसा वृद्ध आचार्य कहते है । यहां पर कोई कहता है कि श्रावण मास की वृद्धि हो तब दूसरे श्रावण सुदी चौथ को ही पर्युषणा करना युक्त है पर भादरवा सुदी चौथ को युक्त नहीं, क्यों कि इससे अस्सी दिन होने के कारण 'वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कते' For Private and Personal Use Only 00000000 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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