SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -पुत्र अभी बालक ही था इतने में पर्युषण पर्व आया । उस वक्त उसके कुटुंब में अट्ठम तप की बात चल रही थी । वह सुनकर जातिस्मरण होने से स्तनपान त्याग कर उस बालक ने भी अट्ठम तप किया । स्तनपान न करता देख और • अट्ठम तप करने के कारण मालती के वासी पुष्प कुमलाया देखकर माता-पिता ने अनेक उपाय किये, परन्तु सचेत न. होकर वह बालक मुर्छित हो गया । उसे मरा समझ कर उसके पिता भी उसके दुःख से मृत्यु को प्राप्त हो गये । उस 5 वक्त विजयसेन राजा ने उस पुत्र और उसके बाप को मरा जानकर उसका धन ग्रहण करने के लिए सुभटों को भेजा । इधर उस बालक के अट्ठम तप के प्रभाव से धरणेद्र का आसन कंपित हुआ । अवधिज्ञान से सर्व वृत्तान्त जानकर तत्काल ही भूमि पर पडे हुए उस बालक को अमृत के सिंचन से सावधान कर ब्राह्मण का रूप धारण कर उसका न ग्रहण करते हुए उसने राजा के सुभटों को रोका । यह सुनकर राजा भी वहां आकर कहने लगा कि हे ब्राह्मण ! - 5जिसका वारस न रहे उस धन को हम ग्रहण करते हैं यह हमारा परंपरागत नियम है, अतः तुम क्यों रोकते हो ? धरणेंद्र बोला राजन् ! इस धन का वारस जिन्दा है । यह सुन राजादि कहने लगे कि कैसे जीवित है ? बतलाइये कहां हैं ? फिर धरणेंद्रेने भूमि से साक्षात् निधि के समान बालक को जीवित दिखलाया । इससे सबके सब आश्चर्य में पड़कर पूछने लगे महाराज ! आप कौन हैं ? और यह क्या घटना बनी ? धरणेंद्र नामक नागराज हूं। इस * बालक ने अट्ठम तप किया था इसी कारण मैं इसको सहाय करने आया हूं लोग बोले स्वामिन् ! पैदा होते ही 婚變黎瑞德獲 For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy