________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir
श्री कल्पसूत्र हिन्दी
प्रथम
व्याख्यान
अनुवाद
11911
Fel 5000
ॐ एक चित्त से इस कल्पसूत्र को इक्कीस दफा सुनता है हे गौत ! वह इस संसार सागर से तर जाता है, इस प्रकार श्री LG कल्पसूत्र की महिमा सुनकर कष्ट और धन व्यय करने से साध्य तप, पूजा और प्रभावना आदि धर्मकृत्यों में आलस्य,
न करना चाहिये । क्योंकि उपरोक्त तपस्यादि सर्व सामग्री सहित ही कल्पसूत्र का सुनना वांछित फलदायक होता है
। जैसे बोया हुआ बीज, वायु आदि सामग्री मिलने पर ही फल देने में समर्थ होता है वैसे ही यह कल्पसूत्र भी देव गुरू * की पूजा प्रभावना और साधर्मिक की भक्ति आदि सर्व सामग्री के साथ सुनने से ही यथार्थ फल देनेवाला होता है ।
अन्यथा सर्व जिनवरों में श्रेष्ठ श्री वर्धमान स्वामी को किया हुआ एक भी नमस्कार पुरूष या स्त्री को इस संसार सागर से पार उतार देता है, ऐसा वचन सुनकर प्रयास से साध्य इस कल्पसूत्र के सुनने में भी आलस्य आ जायेगा ।
यह एक नियम है कि पुरुष के विश्वास से ही उसके वचन पर विश्वास जमता है इस लिए यहां पर कल्पसूत्र के कर्ता को बतलाते हैं । इसकी रचना करने वाले चौदह पूर्वधारी युगप्रधान श्री भद्रबाहुस्वामी हैं । उन्होंने प्रत्याख्यानप्रवाद
नामक नवमे पूर्व में से उध्धृत कर के जो दशाश्रुतस्कंध शास्त्र बनाया उसका यह आठवां अध्ययन है । इसलिए महापुरुष प्रम प्रणीत होने से यह प्रमाणभूत है ।
पूर्वो का प्रमाण पहला पूर्व एक हार्थी प्रमाण स्याही के पुंज से लिखा जा सकता है, दूसरा पूर्व दो हाथी प्रमाण स्याही,
朝網翰翰%
For Private and Personal Use Only