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श्री कल्पसूत्र
सातवां
हिन्दी
व्याख्यान
अनुवाद
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# चितायें कराई । एक तीर्थकर के शरीर के लिए, एक गणधरों के शरीर के लिए, और एक शेष मुनियों के लिए है ह। फिर आभियोगिक देवों से क्षीरसमुद्र से जल मंगवाया । उस क्षीरसमुद्र के जल से इन्द्रने प्रभु के शरीर को स्नान
कराया । ताजे गोशीर्षचंदन के द्रव से विलेपन किया, हंस लक्षणवाला वस्त्र ओढाया और सर्व अलंकारों से विभूषित किया । इसी तरह अन्य देवों ने गणधरों तथा मुनियों के शरीर को भी किया । फिर इन्द्र ने विचित्र प्रकार के चित्रों से चित्रित तीन शिविकाएं बनवाई । आनन्द रहित दीन मनवाले तथा अश्रुपूर्ण नेत्र वाले इंद्रने प्रभु के शरीर को शिबिका में पधराया । दूसरे देवों ने गणधरों और मुनियों के शरीरों को शिबिका में पधराया । इंद्रने तीर्थकर के शरीर को
शिबिका में से नीचे उतार कर चिता में स्थापन किया । दूसरे देवो ने गणधरों और मुनियों के शरीरों को चिता में र स्थापन किया । फिर इंद्र की आज्ञा से आनन्द और उत्साह रहित हो अग्निकुमार देवों ने चिता में अग्नि प्रदीप्त किया।
। वायुकुमार ने वायु चलाया और शेष देवों ने उन चिताओं में कालागुरू, चंदनादि उत्तम काष्ठ डाला तथा सहद और घी के घड़ों से चिताओं को सिंचन किया । जब उनके शरीर की सिर्फ हड्डियां शेष रह गई तब इंद्र की आज्ञा से मेघकुमार ने उन चिताओं को ठंडी कर दी । सौधर्मेन्द्रने प्रभु की दाहिनी तरफ की उपर की दाढ ग्रहण की । ' ईशानेंद्रने उपर की बाई तरफ दाढ ग्रहण की । चमरेंद्र नीचे की दाहिनी दाढ और बलीद्रने नीचे की बाई दाढ ग्रहण
की । अन्य देवों ने भी किसी ने भक्तिभाव से, किसीने अपना आचार समझ कर और किनते एकने धर्म समझ ॐकर शेष रही हुई अंगोपांग अस्थियां ग्रहण की।
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