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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॐ सातवां श्री कल्पसूत्र हिन्दी व्याख्यान अनुवाद * 11124|| ब्राह्मी ने भी दीक्षा ली और वह मुख्य साध्वी बनी । भरत राजा श्रावक बना । यह स्त्रीरत्न बनेगी यह समझ में कर सुंदरी को दीक्षा लेने से रोकी हुई सुन्दरी श्राविका बनी । इस प्रकार चतुर्विध संघ की स्थापना हुई । फिर कच्छ और महाकच्छ के सिवा सर्व तापसोंने प्रभु के पास आकर दीक्षा ग्रहण की । इंद्र के प्रतिबोध से मरूदेवी माता का शोक निवारण कर भरत राजा अपने स्थान पर चला गया । अब भरत राजा चक्ररत्न की पूजा कर शुभ दिन में प्रयाण कर साठ हजार वर्ष में भरतक्षेत्र के छह खंडो को साध कर अपने घर वापिस आया । परन्तु चक्ररत्न आयुधशाला के बाहर ही रहा । कारण समझ भरत ने अपने अठाणवें भाईयों को कहा कि-मेरी आज्ञा मानो । यह समाचार एक दूत के मुख से कहलवाया था । उनका सबने एकत्रित होकर इस बात पर विचार किया कि -भरत की आज्ञा मानना था उसके साथ युद्ध करना । विचार कर सब के सब प्रभु की आज्ञानुसार वर्तने के लिए यह पूछने उनके पास आये । प्रभु ने भी बैतालिक अध्ययन की प्ररूपणा द्वारा उन्हें प्रतिबोधित कर वहां ही दीक्षा दे दी । अब भरत ने बाहुबलि पर भी दूत भेजा । वह भी क्रोध से अन्ध हो और अहंकार से उद्धत हो अपना सैन्य साथ ले भरत के सामने आ इटा । बारह वर्ष तक भरत के साथ्ज्ञ युद्ध करता रहा, परन्तु हार न खाई । जनसमूह का अधिक संहार होता देख इंद्र ने आकर दृष्टि. सुन्दरी ने प्रभु से जब यह सुना कि जो स्त्रीरत्न होता है वह नरकगामी होता है तो उसने भयभीत हो सात हजार वर्ष तक आयबिल की तपश्चर्या की तपश्चर्या करके भरतचक्रवती की आज्ञा ले कर दीक्षा ले ली। 多听多玩多玩 124 For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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