________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
परन्तु योग्य भिक्षा न मिलने पर भी अदीन मनवाले प्रभु विचरते हुए कुरूदेश के हस्तिनापुर नगर में पधारे । वहां पर बाहुबलि के पुत्र सोमप्रभ का पुत्र श्रेयांस नामक युवराज था । उस श्रेयांस ने रात्रि में ऐसा स्वप्न देखा कि-"मैंने श्यामवर्ण के मेरू को अमृत के कलशों से सिंचित किया जिससे वह अत्यन्त शोभने लगा ।" वहां के सुबुद्धि नामक नगरसेठ ने भी ऐसा स्वप्न देखा "सूर्यमंडल से खिसक पड़ी हुई हजार किरणों को श्रेयांसने फिर से वहां स्थापित कर दिया है इससे वह सूर्य शोभने लगा है।" वहां के राजा सोमप्रभने भी उस रात को ऐसा स्वप्न देखा कि "एक महापुरूष शत्रु सैन्य के साथ लड़ रहा है वह श्रेयांस की सहायता से विजयी हुआ ।" उन तीनों से सुबह राजसभा में एकत्रित होकर परस्पर अपने-अपने स्वप्न कहे । उन पर से आज श्रेयांस को कोई बड़ा लाभ होना चाहिये, राजाने यह निर्णय कर सभा विसर्जन की । श्रेयांसकुमार अपने घर जाकर बारी में बैठा ही था कि इतने में ही "प्रभु कुछ भी नहीं लेते" लोगों को इस प्रकार कहते सुना । उसने उधर देखा तो प्रभु पर
दृष्टि पड़ी । प्रभु को देखते ही उसके मन में तुरन्त यह विचार उत्पन्न हुआ कि "मैने पहिले ऐसा विष कहीं पर देखा र है इस तरह उहापोह करते हुए श्रेयांस को जाति स्मरण ज्ञान पैदा हुआ उसने स्वयं जान लिया कि "मैं तो पूर्वभवत में प्रभु का सारथी (रथवान्) था और प्रभु के साथ मैंने दीक्षा ली थी । उस वक्त श्री वजसेन प्रभु ने कहा था कि यह वजनाभ भरतक्षेत्र में पहला तीर्थकर होगा' वही ये प्रभु हैं । इधर उसी समय कोई एक मनुष्य श्रेयांस के वहां इक्षुरस के घडे भर कर भेंट देने आया था।
S
For Private and Personal Use Only