________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kabatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्राप्त होने पर जन्म हुआ । 4 इसके बाद का सर्व वृत्तान्त-देव देवियोंने वसुधारा की वृष्टि की वहां तक, उसमें बन्दीजनों को छोड़ देने की,
मानोन्मान के वर्धन की और दाण (महेसूल) छोड़ देने आदि कुलमर्यादा की हकीकत वर्ज कर बाकी का सब कुछ वृत्तांत पूर्वोक्त प्रकार से श्रीमहावीर प्रभु के जन्मसमय का कहा है उसी तरह कहना चाहिये ।
अब देवलोक से च्यवकर अद्भुत रूपवान्, अनेक देव-देवियों से परिवृत, सकल गुणों द्वारा युगलिक मनुष्यों से अति उत्कृष्ट, अनुक्रम से वृद्धि प्राप्त करते हुए श्रीऋषभदेव प्रभु आहार की इच्छा होने पर देवताओं द्वारा अमृत प्र रस से सिंचित की हुई रसवाली, अंगुली-अंगुष्ठ मुख में रख कर चूसते थे। इसी तरह दूसरे तीर्थकरों के लिए
भी बाल्यकाल जानना चाहिये । दूसरे तीर्थंकरों की बाल्यावस्था बीतने पर वे अग्नि पर पके हुए आहार का भोजन
करते थे, परन्तु श्री ऋषभदेव प्रभुने तो दीक्षा ली तब तक देवों द्वारा लाये हुए उत्तर कुरुक्षेत्र के कल्पवृक्ष के फलों 5 का ही भोजन किया था ।
इक्ष्वाकु वंश की स्थापना अब प्रभु की उम एक वर्ष से कुछ कम ही थी तब "प्रथम जिनेश्वर के वंश की स्थापना करना यह इंद्र का आचार है" ऐसा विचार कर और "खाली हाथ से प्रभु के पास कैसे जाऊँ" यह सोचकर इंद्र एक बड़ा ईखका * गन्ना लेकर नाभिकुलकर की गोद में बैठे हुए प्रभु के पास आकर खड़ा हुआ । उस वक्त ईख का गन्ना देख
Delanाली
)
For Private and Personal Use Only