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श्री कल्पसूत्र
सातवां
हिन्दी
व्याख्यान
अनुवाद
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ॐको तू तप करके क्यों सुकाती है ? इस लिए हे भद्रे ! तू इच्छापूर्वक यहां आ और हम दोनों अपना जन्म सफल न करें । फिर अन्त में हम तपविधि का आचरण कर लेंगे ।
- महासती राजीमती यह सुन कर और उसे देख अद्भूत धैर्य धारण कर बोली-हे महानुभाव ! तू नर्क के मार्ग Xका अभिलाष क्यों करता है ? सर्व सावद्य का त्याग कर के फिर से उसकी इच्छा करते हुए तुझे लज्जा नहीं पर
आती ? अगन्धन कुल में जन्मनेवाले तिर्यच सर्प भी जब वमन किये पदार्थ को नहीं इच्छते तब फिर क्या तू उनसे
भी अधिक नीच है ? भी इस प्रकार के राजीमती के वचनों को सुनकर बोध को प्राप्त हो रथनेमि मुनि भी श्री नेमिनाथ प्रभु के पास
जाकर अपने अतिचारों की आलोचना कर घोर तपस्या कर के मोक्ष गये । राजीमती भी चारित्र आराधन कर
अन्त में मोक्षशय्या पर आरूढ हो गई और बहुत समय से प्रार्थित श्रीनेमि प्रभु के शाश्वत संयोग को उसने प्राप्त * कर लिया। राजीमती चारसौ वर्ष तक गृहवास में रही, एक वर्ष तक छद्मस्थ पर्याय में रही और पांचसौ वर्ष तक केवली पर्याय पालकर मुक्ति गई ।
- प्रभु का परिवार - अर्हन् श्रीनेमिनाथ प्रभु के अट्ठारह गण और अट्ठारह ही गणधर हुए । वरदत्त आदि अट्ठारह हजार (18000) साधुओं की उत्कृष्ट संपदा हुई । आर्य यक्षिणी प्रमुख चालीस हजार (40000) उत्कृष्ट
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