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श्री कल्पसूत्र हिन्दी
सातवां
व्याख्यान
अनुवाद
1110911
- पशुओं की पुकार और भगवन्त की करूणा - जिस वक्त इन सखियों में यह वार्तालाप हो रहा था उस वक्त पशुओं की करुण पुकार सुनकर श्रीनेमिनाथ प्रभु तिरस्कार युक्त बोले-हे रथवान् ! यह कैसा आर्तनाद सुनाई देता है ? रथवान् बोला-महाराज ! आपके
विवाह में भोजन के लिए एकत्रित किये पशुओं का यह वाड़ा है । सारथी की बात सुनकर प्रभु विचारने लगे-ऐसे 2 विवाह महोत्सव को धिक्कार है जिसमें इन पशुओं का प्राण बलि हो । इधर उसी वक्त राजीमती का दाहिना नेत्र त भी फुर्कने लगा और उसने अपनी सखियों से कहा । सखियों ने भी कहा-तेरा अपमंगल दूर हो यों कहकर थू-थूकार करने लगी।
उस वक्त नेमिनाथ प्रभुने रथवान् से कहा-हे सारथी ! तुम यहां से ही रथ को वापिस फिरा लो । इस वक्त नेमिनाथ प्रभु को देखकर वाडे में रहा हुआ एक हरिण अपनी गरदन एक हरिणी की गरदन पर रखकर खड़ा था, उस पर कवि घटता करता है-कि मानो प्रभु को देख हरिण कहता है-हे प्रभो ! मेरे हृदय को हरण करनेवाली इस हरिणी को मत मारो । हे स्वामिन् ! हमें अपने मरण से भी अपनी प्रियतमा का विरह दुःख अति दुःसह है । प्रभु का मुख देख मानो हरिणी भी हरीण से कहती है-ये तो प्रसन्न मुखवाले तीन लोक के नाथ हैं, अकारण बन्धु हैं इस लिए हे वल्लभ ! इन्हें सर्व जीवों के रक्षण की विनती करो । तब मानो पत्नी से प्रेरित हरिण नेमिनाथ प्रभु को कहने लगा-हे प्रभो ! हम झरनो को पानी पीनेवाले, जंगल का घास
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