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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणसुन्दर ऐसे इस वर में जो दूषण बतलाया जाता है यह सचमुच ही दूध में पूरे बतलाने के समान है । फिर दोनों सखियां विनोदपूर्वक बोली-हे राजीमती । प्रथम तो वर गौर वर्णमाला होना चाहिये, दूसरे गुण तो परिचय होने व पर मालूम होते हैं, परन्तु वह गौरपन तो इसमें काजल के समान है । यह सुनकर ईर्ष्या सहित राजीमती सखियों को कहने लगी-आज तक मुझे यह भ्रम था कि तुम दोनों चतुर -* - हो, परन्तु आज वह भ्रम दूर हो गया । क्यों कि सर्व गुणों का कारणरूप जो श्यामपणा है उसे भूषण होने पर भी तुम दूषणतया कथन करती हो । अब तुम सावधान होकर सुनो. श्यामता और श्याम वस्तुओं का आश्रय करने में कैसे गुण रहे हुए हैं और केवल गौरपणे में कैसे दूषण होते हैं । पृथवी, चित्रावेल, अगर, कस्तूरी, मेघ, Wआंख की कीकी, केश, कसोटी, स्याही तथा रात्रि ये सब काली वस्तुयें महाफलवाली होती हैं । ये श्यामता में 7 गुण बतलाये हैं । तथा कपूर में कोयला, चन्द्र में चिन्ह, आंख में कीकी, भोजन में काली मिरच, और चित्र LA में रेखा; ये वस्तुयें यद्यपि श्याम रंगवाली हैं तथापि सफेद वस्तुओं की शोभा बढ़ानेवाली हैं । यह श्यामता LO के आश्रय में गुण समझना चाहिये । अब सफेद वस्तुओं के दूषण देखो-नमक खारा होता है, बरफ दहनकारी होता है, अति सफेद शरीरवाला रोगी होता है तथा चूना भी परवश ही गुणवाला है । क्योंकि वह पान में मिलने पर ही रंग देता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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