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बारह महीनों के नाम हैं । तथा पूर्वागसिद्ध, मनोरम, मनोहर, यशोभद्र, यशोधर सर्वकामसमृद्ध, इंद्र, मूर्धाभिषिक्त, सोमनस, धनंजय, अर्थ, अर्थसिद्ध, लामेजित रत्याशन, शंत्रुजय तथा अग्निवेश्य । ये पंद्रह दिन के नाम हैं । तथा ।
उतमा सुनक्षत्र, इलापत्या, यशोधरा, सौमनसी, श्रीसंभूता विजया, विजयन्ती, अपराजिता, इच्छा, समाहारा,
तेजा, अभितेजा, तथा देवानन्दा, ये पंद्रह रात्रियों के नाम हैं। तथा रूद्र, श्रेयान्, मित्र, वायु, सुप्रतीत, अभिचंद्र..
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माहेंद्र, बलवान् ब्रह्मा, बहुसत्य, एशान, त्वष्टा, भावितात्मा वैश्रवण, वारूण, आनन्द, विजय, विजयसेन, प्रजापत्य, उपशम गंधर्व, अग्निवेश्य, शतवृषभ, आतपवान्, अर्थवान्, ऋणवान्, भौम, वृषभ, सर्वार्थसिद्ध और 筑 राक्षस, ये तीस मुहूर्तों के नाम हैं ।
जिस रात्रि में श्रमण भगवान् श्रीमहावीर प्रभु कालधर्म पाये, यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए वह रात्रि स्वर्ग से आते जाते देव देवियों से प्रकाशवाली हो गई । तथा कोलाहलमयी जिस रात्रि को श्रमण भगवान् श्री महावीर प्रभु कालधर्म पाये, यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए उस रात्रि में गौतमगोत्रीय बड़े इंद्रभूति अणगार शिष्य को ज्ञातकुल में जन्मे हुए श्रीमहावीर प्रभु पर से प्रेमबन्धन टूट जाने पर अनन्त, अनुपम उत्तम केवल ज्ञानदर्शन उत्पन्न हुआ । वह वृत्तान्त निम्न प्रकार है ।
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(गौतमस्वामी का विलाप और केवलज्ञान)
प्रभु ने अपने निर्वाण समय गौतम को किसी ग्राम में देवशर्मा ब्राह्मण को बोध करने के लिए भेज दिया
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