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जानता ? तेरे संदेह का कारण प्रथम-"पुरूष एवेदं निं सर्व' इत्यादि अग्निभूति ने कहा था सो है, हमने पहले इसका उत्तर दिया है तुम्हें भी उसी प्रकार समझना चाहिये । तथा 'पुण्यः पुण्येन कर्मणा पापः पापेन कर्मणा' पुण्य कर्म से पुण्य होता है और पापकर्म से पाप होता है इत्यादि वेद पदों से पुण्य पाप की सिद्धि होती है । यह नवमे गणधर हुए। ___ अब परभव में शंका रखनेवाले मेतार्य नामा पंडित को कहा-तू भी वेदार्थ नहीं जानता? तुझे भी इंद्रभूति ने कहे हुए 'विज्ञानघन एवैतेभ्यो भूतेभ्यः' इत्यादि पदों द्वारा परलोक के विषय में संदेह है परन्तु इन पदों का अर्थ मेरे कथनानुसार विचार कि जिस से तेरा संदेह दूर हो जाय । यह दश में गणधर हुए ।
फिर मोक्ष के विषय में शंकावाले प्रभास नामक पंडित को प्रभु कहते हैं-तू भी वेदार्थ को नहीं जानता? - "जरापर्य वा यदग्निहोत्रं" इस पद से मोक्ष का अभाव प्रतीत होता है. क्योंकि जो अग्निहोत्र है वह 'जरामर्य'
अर्थात् सदैव करना कहा है और अग्नि होत्र की क्रिया मोक्ष का कारण नहीं बन सकती, क्यों कि सदोष होने से कितने एक को वध का कारण बनती है और कितने एक को उपकार का । इससे मोक्ष साधक अनुष्ठान की क्रिया करने का काल नहीं बतलाया, इस कारण मोक्ष है नहीं, अर्थात् मोक्ष का अभाव
मेतार्य परलोक में शंका रखते थे। प्रभास को मोक्ष का संदेह था ।
明朝%%
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