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Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie
प्रथम
श्री कल्पसूत्र हिन्दी
की
व्याख्यान
अनुवाद
ॐदेखना मना किया था तो नटनी का नाच तो विशेष रागजनक होने से वह तो स्वतः ही निषिद्ध है । इस तरह विचार ॐ LG कर नटी का नृत्य देखे बिना ही उपाश्रय चले आये । यहां पर शिष्य की और से कहा जाता है कि तब तो बाईस तीर्थकरों
के ऋजु और प्राज्ञ मुनियों को ही धर्म हो सकता है, परन्तु ऋजुजड़ प्रथम तीर्थकर के मुनियों को कैसे धर्म हो सकता है ? क्योंकि उन में बोध नहीं होता । तथा श्रीवीर प्रभु के वक्र और जड़ मुनियों को तो सर्वथा धर्म का अभाव ही होना चाहिये । गुरू कहते हैं कि-ऐसी शंका न करना, क्योंकि यद्यपि प्रथम तीर्थकर के मुनियों को जड़ता के कारण स्खलना
पाने का संभव है तथापि उनका भाव शुद्ध होने से उनमें धर्म होता है । एवं वीरप्रभु के मुनि वक्र और जड़ होने से उनका 5 मनोभाव ऋजु प्राज्ञ की अपेक्षा शुद्ध न होवे तथापि सर्वथा धर्म ही उनमें नहीं है ऐसा नहीं कहा जा सकता । ऐसा कहने ५
में महान् दोष लगता है । इस विषय में कहा है कि -जो यह कहे कि आज धर्म नहीं है, सामायिक नहीं है ओर व्रत नहीं है उसे समस्त संघ को मिलकर संघ से बाहर कर देना उचित है ।
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कारणसर विहार और क्षेत्रगुण जो पर्युषणाकल्प सत्तर दिनमान नियततया कथन किया है सो भी कारण के अभाव में ही समझना योग्य है । यदि कुछ कारण हो तो चातुर्मास में विहार करना कल्पता है। जैसे कि "उपद्रव हो, आहार न मिलता हो और राजादि से अपमान होता हो या रोगादि कारण हो तो चातुर्मास में भी अन्यत्र विहार करना
की सी
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