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वहीं जीत और वही शरीर का संदेह था । उनके प्रत्येक के साथ पांच सौ पांच सो शिष्य परिवार था । इसी तरह व्यक्त और सुधर्मा नामा दो ब्राह्मण उतने ही परिवार वाले एवं वैसे ही विद्वान थे । क्रम से पहले को पंचभूत हैं 5 या नहीं ? और दूसरे को जो जैसा है वह वैसा ही होता है । उन्हें भी वे संदेह थे । वैसे ही विद्वान् मंडित और
मौर्यपुत्र दो भाई थे । उनके प्रत्येक का साढ़े तीन सौ साढ़े तीन सौ शिष्य परिवार था । क्रम से उनमें पहले को ॐ बन्ध मोक्ष का और दूसरे को देवों के सम्बन्ध में संदेह था । इसी तरह अकंपित, अचलभ्राता, मेतार्य और प्रभास
नामक चार ब्राह्मण थे उनका प्रत्येक का तीन सौ तीनसौ परिवार था । अनुक्रम से उनमें नारकी का, दूसरे कोLE पुण्य का, तीसरे को परलोक का तथा चौथे को मोक्ष का संदेह था । इस प्रकार उन ग्यारह ही विद्वानों को हर एक को एक-एक संदेह था । परन्तु अपने सर्वज्ञपन के अभिमान की क्षति के भय से एक दूसरे को पूछते न थे ।
ऐसे उनके परिवार के चौवालिस सौ ब्राह्मण तथा अन्य भी उपाध्याय, शंकर, ईश्वर, शिवजी, जानी, गंगाधर,* त महीधर, भूधर, लक्ष्मीधर, पण्डया, विष्णु, मुकुन्द, गोविन्द, पुरूषोत्तम, नारायण, दुवे, श्रीपति, उमापति, गणपति..
जयदेव, व्यास, महादेव, शिवदेव, मूलदेव, सुखदेव, गंगापति, गौरीपति, त्रिवाड़ी, श्रीकंठ, नीलकंठ, हरिहर, रामजी, बालकृष्ण, यदुराम, राम, रामाचार्य, राउल, मधुसूदन, नरसिंह, कमलाकर, सोमेश्वर, हरिशंकर, विक्रम, जोशी, पूनो, रामजी, शिवराम, देवराम, गोविन्दराम, रघुराम और उदयराम आदि बहुत से ब्राह्मण वहीं एकत्रित हुए थे ।
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