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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद 117911 405000 www.kobatirth.org शिष्य के पास से कुछ अष्टांग जानकर अहंकार से लोगों में अपने आपको सर्वज्ञ प्रसिद्ध करने लगा । दशवां चौमासा प्रभु ने श्रावस्थी नगरी में किया और वहां पर उन्होंने विचित्र प्रकार का तप भी किया । संगम देवता के घोर उपसर्ग । इस प्रकार अनुक्रम से प्रभु बहुत म्लेल्छोवाली दृढभूमि में पधारे। वहां पेढाल ग्राम के बाहर पोलास के चैत्य में अट्टम तपपूर्वक प्रभु एक रात्रि की प्रतिमा ध्यान लगा कर रहे। इस समय इंद्र ने अपनी सभा में देवों के समक्ष प्रभु की प्रशंसा करते हुए कहा कि-वीर प्रभु के चित्त को चलायमान करने के लिए तीन लोक के निवासी भी समर्थ नहीं हैं । इस तरह प्रभु की प्रशंसा सुनकर संगम नामक मिथ्यादृष्टि सामानिक देव ईर्षा से इंद्र के सामने प्रतिज्ञा करने लगा कि मैं उन्हें क्षणवार में चलायमान् कर दूंगा । यह प्रतिज्ञा कर उसने तुरन्त ही प्रभु के पास आकर प्रथम तो धूल की वृष्टि की जिस से प्रभु के आंख, नाक, कान आदि के विवरछिद्र 'बन्द हो जाने से वे श्वास लेने को भी असमर्थ हो गये। फिर वज्र के समान तीक्ष्ण मुखवाली चींटियां बनाकर प्रभु के शरीर पर छोड़ी। उन्होंने प्रभु का शरीर छलनी के समान छिद्रवाला कर दिया। एक तरफ से प्रवेश कर दूसरी ओर से निकलने लगीं। इसी प्रकार फिर तेज मुखवाले डांस, तीक्ष्ण मुखवाली घीमेलिका, (कीडिया), बिच्छु न्योले, सर्प, चूहे आदि के भक्षण से, फिर हाथी, हथनियां बनाकर उनके सूंड द्वारा आघातों से For Private and Personal Use Only 4000 4000 4500 40 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छट्टा व्याख्यान
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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