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________________ Shri Mah Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyarmandir श्री कल्पसूत्र हिन्दी छट्टा व्याख्यान अनुवाद 117411 पर प्रभु के त्रिपृष्ठ के भव में मारे हये सिंह के जीवने सुदंष्ट नामक देव ने नाव को इबो देने का प्रयत्न किया, परन्त कंबल, शंबल नामक नागकुमार देवों ने आकर उस विघ्न को दूर किया । उन कंबल शंबल की उत्पत्ति इस प्रकार है मथुरा नगरी में साधुदासी और जिनदास नामक स्त्री भरतार रहते थे । वे परम श्रावक थे, पांचवे परिग्रह व्रत में उन्होंने चौपद पशु सर्वथा न रखने का परित्याग किया था । एक ग्वालन उनके घर हमेशा दूध दही दे जाती थी, साधु दासी उसकी एवज में यथोचित द्रव्य दे देती थी. इस प्रकार उनमें अत्यन्त प्रेमभाव हो गया । एक दिन उस ग्वालन के घर विवाह का प्रसंग आ गया अतः उनसे उन दोनों को निमंत्रण दिया । उन्होंने कहा कि हम ब्याह में तो तेरे घर नहीं आ सकते, परन्तु व्याह में जो सामग्री चाहिये सो हमारे घर से ले जाना । उनसे मिले हुए चंद्रवा, वस्त्र, आभूषणादि से उस ग्वालन का विवाह अच्छा उत्कृष्ट हो गया । इससे ग्वाला और ग्वालनने प्रसन्न होकर अत्यन्त मनोहर और समान उग्रवाले दो बाल वृषभ-बछड़े लाकर उन्हें दे दिये । उनके अनेकबार इंकार करने पर भी - वे जबरदस्ती उनके घर बांध गये । जिनदास ने विचारा कि यदि अब इन्हें वापस दे दूंगा तो खस्सी करने और भार ढोने आदि से वहां दुःख ही पायेंगे । इस विचार से वह प्रासुक तृण जल आदि से उनका पोषण करने लगा । उनके बांधने की जगह के पास ही पोशाल थी । जब अष्टमी आदि पर्व के दिन जिनदास पौषध लेकर पुस्तक पढ़ता तब वे भी सुनते और इससे वे भद्रिक बन गये । अब जब कभी वह श्रावक उपवास कर के पौशाल में बैठता है - तब उस दिन वे बैल भी चारा नहीं खाते । इससे जिनदास को उन पर अधिक प्रेम हो गया । एक दिन स . में For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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