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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 500 500 450140 www.kobatirth.org पर दृष्टि ज्वालायें फेंकने लगा और दृष्टि ज्वाला फेंककर इस विचार से कि इसके गिरने पर मैं अब दब न जाऊं, पीछे हट जाता है । परन्तु प्रभु को निश्चल ध्यानस्थ देख कर अत्यन्त क्रोधातुर हो उसने प्रभु को डंक मारा तथापि प्रभु को अव्याकुल देख और उनके पैर से दूध के समान सफेद खून निकला देखकर तथा "बुज्झ बुज्झ चंडकौसिया ऐसे प्रभुवचन सुनकर विचार करते हुए उसे जातिस्मरण ज्ञान हुआ। अब वह प्रभु को तीन प्रदक्षिणा देकर अहो ! करुणासागर प्रभु ने मुझे दुर्गतिरूप कूप में से निकाल लिया इत्यादि विचार करता हुआ अनशन कर एक पक्ष तक अपने बिल में मुह डालकर शान्त रहने लगा तो उस मार्ग से जाती हुई घी बेचनेवाली स्त्रियों ने उस पर घी के छांटे डालकर उसकी पूजा की । उस घी आदि की सुगन्ध के कारण वहां चींटिया आई अनेकानेक चीटियों से वह सर्प अत्यन्त पीडित होता हुआ; पर प्रभु की दृष्टिरूप अमृत से सिंचित हो मृत्यु पाकर वह सहस्त्रार देवलोक में देव बना । 4050040500405140 प्रभु वहां से अन्यत्र विहार कर गये । उत्तर वाचाला में नागसेन ने प्रभु को क्षीर से पारणा कराया। वहां पर पंच दिव्य प्रगट हुए। वहां से श्वेताम्बी नगर में परदेशी राजा ने प्रभु की महिमा की वहां से सुरभिपुर जाते हुए प्रभु को पांच रथयुक्त नैयका गोत्रवाले राजाओं ने वंदन किया वहाँ से प्रभु सुरभिपुर गये । वह गंगा नदी के किनारे सिद्धयात्र नाविक लोगों को नाव पर चढ़ा रहा था, प्रभु भी उस नाव में चढ़ गये । उस वक्त उल्लू का शब्द सुनकर क्षेमिल नामक निमित्तियेने कहा कि आज हमें मरणांत कष्ट आयगा परन्तु (प्रभु की तरफ इशारा कर के) कहा कि इस महापुरूष के प्रभाव से उस संकट का नाश होगा। गंगा नदी उतरते समय For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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